गुरुवार, 20 अक्तूबर 2016

दुकानदारों का ऐसा पाण्डित्य देखकर वे आश्चर्यचकित हो गये।

उस समय के प्रसिद्ध ब्राह्मण भी श्रील नरोत्तम ठाकुए के शिष्य बनते थे। जब श्री जगन्नाथ आचार्य , श्री गंगानारायण चक्रवर्ती इत्यादी प्रसिद्ध ब्राह्मण आपके शिष्ये हुये तो स्मार्त्त ब्राह्मणों ने ईर्ष्या परवश राजा नरसिंह के पास शिकायत लगायी कि नरोत्तम शूद्र होते हुये भी ब्राह्मणों को शिष्य बना रहा है, वह जादु से सब को मोहित कर रहा है' उसको ऐसा कार्य करने से रोकना ही उचित है। राजा के साथ परामर्श करने के उपरान्त ये फैसला हुआ कि महादिग्विजयी पण्डित श्रीरूपनारायण के द्वारा नरोत्तम ठाकुर को हराना होगा। राजा स्वयं दिग्विजयी पण्डित को साथ लेकर खेतुरी धाम की ओर चल पड़े। किन्तु उनके इस प्रकार के दुष्ट अभिप्राय की बात सुनकर श्रीरामचन्द्र कविराज और श्रीगंगानारायण चक्रवर्ती अत्यन्त दुःखी हुये। जब उन्हें वे सुनने को मिला कि राजा दिग्विजयी पण्डित एवं पण्डितों के साथ एक दिन कुमारपुर के बाजार में विश्राम करने के बाद खेतुरी में आयेंगे तो ये सुनते ही दोनों कुमारपुर के बाजार में पहुँचे और वहाँ पर कुम्हार और पान-सुपारी की दुकान लगा कर बैठ गये । 

स्मार्त्त पण्डित जब कुम्हार और पान सुपारी की दुकान पर आये तो रामचन्द्र और गंगानारायण उनके साथ संस्कृत में बात करने लगे।  दुकानदारों का ऐसा पाण्डित्य देखकर वे आश्चर्यचकित हो
गये। फिर छात्रों द्वारा तर्क शुरू करने पर श्रील नरोत्तम ठाकुर के दोनों शिष्यों ने उनके तर्कों का खण्डन कर दिया। ये घटना जब राजा ने सुनी तो राजा भी पण्डितों के साथ वहाँ आकर शास्त्रार्थ करने लगा। रामचन्द्र कविराज और गंगानारायण चक्रवर्ती ने बातों ही बातों में उनके सारे विचारों का खण्डन कर शुद्ध भक्ति सिद्धान्तों की स्थापना कर दी। राजा और पण्डित सामान्य दुकानदारों का ऐसा अद्भुत पाण्डित्य देखकर स्तम्भित हो गए। राजा को जब मालूम हुआ कि ये दोनों श्रीलनरोत्तम ठाकुर के शिष्य हैं तो राजा ने पण्डितों को कहा कि जिनके शिष्यों के सामने ही आप लोग परास्त हो गये हो तो उनके गुरु के पास जाने से क्या होगा? बाद में राजा नरसिंह और रूपनारायण ने देवी के द्वारा स्वप्न में आदेश पाने पर श्रील नरोत्तम ठाकुर जी से अपने अपराध के लिये क्षमा मांगी एवं श्रीराधा-कृष्ण के भक्त बन गये।

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