गुरुवार, 25 अगस्त 2016

ऐसा क्या करें कि साक्षात् भगवान आपके साथ बातचीत करें, आपके साथ खेलें…

यह बात सही है कि श्रीहरिनाम अथवा भगवान के नाम का जप अथवा संकीर्तन करते रहने से, मुक्ति मिल जाती है, समस्त प्रकार के पापों का नाश हो जाता है। किन्तु यह फल हरिनाम संकीर्तन का मुख्य फल नहीं है, ये तो वैसे ही मिल जाते हैं। श्रीहरिनाम संकीर्तन से भगवान श्रीकृष्ण के चरणों की प्राप्ति हो जाती है।

श्रीकृष्ण नाम का संकीर्तन करते-करते तो जीव के हृदय में कृष्ण-प्रेम उदय हो जाता है। ऐसी स्थिति में श्रीकृष्ण के दर्शन की उत्कंठा रूपी अग्नि के द्वारा भक्त का चित्त ऐसे द्रवीभूत हो जाता है जैसे कि अग्नि में तपा हुआ सोना। इस स्थिति में वह भगवान के प्रेम में व भगवान के विरह में कभी रोता है तो कभी हँसता है।

जैसे वृजलीला में भगवान माखन चोरी लीला का अभिनय करते हैं। अपने भक्तों को आनन्द देने के लिये के प्रेम में, वे किसी भी गोपी के घर में सुबह-सुबह ही घुस जाते हैं। वहाँ कन्हैया अपने सखाओं को तथा बन्दरों को माखन लुटाते हैं। ऐसे में गोपी जब यह देखती है तो वह शोर मचाती है -- पकड़ो! अरे कोई पकड़ो! यह नन्द का छोरा हमारा माखन चुरा रहा है!

इस प्रकार वह गोपी, अन्य गोपियों को इकट्ठा कर लेती है। भगवान भयभीत होने का अभिनय करते हैं व बाहर जाने का मार्ग खोजते हैं। यही नहीं अपने ठाकुर को, अपने आराध्य देव को डर-डर के छुपते-छुपाते घर से निकलते देख भक्त हँसने लगता हैं। ऐसे ही जब भगवान अदृश्य हो जाते हैं तो वही भक्त रोने लगता है मानो श्रीकृष्ण रूपी महानिधी उसके हाथ से निकल गयी हो। 

भक्त की विरह वेदना व करुण पुकार सुनकर भक्त-वत्सल भगवान उसको आश्वासन देते हुये पुनः वहाँ प्रकट हो जाते हैं। एक बार फिर भगवान की स्फूर्ति प्राप्त होने पर भक्त आनन्द में झूमने व गाने लगता है।

अगर आप भी चाहते हैं कि भगवान आपके घर आयें, आपके सामने खेलें, आपसे बातचीत करें, तो शुद्ध-भक्त के आनुगत्य में श्रीहरिनाम संकीर्तन किया करें, भगवान की प्रसन्नता के लिये उनके प्रिय भक्तों की सेवा करें, तुलसी जी की सेवा करें व श्रद्धा के साथ एकादशी आदि व्रतों का पालन किया करें। 

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