शनिवार, 20 अगस्त 2016

जब भगवान मदनमोहन जी स्वय बोल पड़े।

बात उन दिनों की है जब जगद्गुरु श्रील भक्ति सिद्धान्त सरस्वती गोस्वामी ठाकुर 'प्रभुपाद' जी के प्रिय शिष्य परमपूज्यपाद श्रील भक्ति कुमुद सन्त गोस्वामी महाराज जी कोलकाता शहर में एक मठ-मन्दिर बनाने की सोच रहे थे।

इस अनुपम कार्य के लिये कोलकाता के निवासी श्रीयुक्त चन्द्रकान्त घोष व उनकी धर्म-पत्नी श्रीमती दीप्ति मा और श्रीअनिल दत्त व उनकी धर्म-पत्नी श्रीमती गीता दत्त ने योगदान दिया। बड़े धूमधाम से कोलकाता के भूपेन राय रोड पर श्रीचैतन्य आश्रम नामक मठ की स्थापना हुई।
आपके गुरु भाई श्रील भक्ति प्रमोद पुरी गोस्वामी महाराज जी व श्रील भक्ति दयित माधव गोस्वामी महाराज 'विष्णुपाद' जी ने बड़ा योगदान दिया। जिसके चलते श्रीमन्दिर, सेवकों के लिए कमरे तथा भगवान का रसोई घर बन गया। 

मंदिर में अभी मूर्ति-प्रतिष्ठा भी नहीं हुई थी कि कुछ उपद्रवी बार-बार वहाँ आते।  स्थिती इतनी बिगड़ गई कि आपने कोलकाता में मठ-मन्दिर बनाने का विचार ही त्याग दिया व वापिस खड़गपुर जाने का निर्णय ले लिया। साथ ही भगवान श्रीमदनमोहन जी के विग्रहों को अपने गुरुभाई श्रील भक्ति दयित माधव गोस्वामी जी को प्रदान करने की सोची।

सन्ध्या के समय ट्रेन के लिये स्टेशन जाने से पहले, आप के मन में विचार आया कि श्रीविग्रह तो मैंने अब अपने गुरु-भाई को दे ही देने हैं, जाते-जाते उनको प्रणाम तो कर लूँ।  अतः भारी मन से आप उस कक्ष की ओर चल
पड़े जहाँ पर श्रीमदन मोहन जी बड़ बक्से में विराजमान थे।

वहाँ पहुँच कर आपने, धीरे से बक्सा खोला। जैसे ही बक्सा खुला, श्रीमदन मोहन जी आपसे बोले - क्यों परेशान होते हो ? सुनो, मैंने कहीं नहीं जाना। मुझे किसी को नहीं देना। मैं यहीं रहूँगा। यहीं पर मेरा मन्दिर बनाओ।
आप तो भाव में मूर्छित से हो गये। धीरे-धीरे यह बात फैल गई कि श्री मदन मोहन जी यहीं रहेंगे। भगवान की कृपा से इस समय कोलकाता के बेहाला नामक स्थान पर भगवान श्रीमदनमोहनजी का भव्य मन्दिर है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें