मंगलवार, 16 अगस्त 2016

श्रीबलराम

महान वैष्णव आचार्य श्रील विश्वनाथ चक्रवर्ती ठाकुर जी ने बताते हैं कि श्रीबलराम जी तो नित्य रोहिणी माँ के ही पुत्र हैं।उन्होंने श्रीमति देवकी के गर्भ के प्रवेश किया क्योंकि वे भगवान की सारी सेवायें करते हैं । अतः भगवान के आने से पहले वहाँ शय्या, आसन, इत्यादि की व्यवस्था करने गये थे। अर्धरात्री के समय रोहिणी जी के गर्भ के सप्तम मास में आकर्षण किया योगमाया ने। रोहिणी जी को स्वप्न में लगा कि उनका गर्भ गिर गया । वे उठ बैठीं व घबरा गयीं। योगमाया ने प्रार्थना रूपी वचनों में कहा, ' हे शुभे! देवकी का गर्भ आकर्षित कर तुम्हारे गर्भ में स्थापित कर रही हूँ । अतः यह संकर्षण के नामे से विख्यात होगा। '
उधर मथुरा वासियों ने बड़ा दुख व्यक्त कर कहा ,' हाय, बेचारी देवकी का यह गर्भ नष्ट हो गया।'

जब ऐसा हुया तब रोहिणी माता जी गोकुल में थीं व देवकी जी मथुरा में।
श्रील विश्वनाथ चक्रवर्ती ठाकुर जी ने अपनी टीका में लिखा कि देवकी जी के सप्तम गर्भ का आकर्षण अथवा यशोमती जी को निद्रा देने की शक्ति जड़माया में नहीं, क्योंकि बलदेव जी या अन्य सिद्ध भक्तों को जड़माया आकर्षित नहीं कर सकती।
जैसे काष्ठ में अग्नि प्रकट होती है, अथवा समुद्र के गर्भ से जैसे चन्द्रमा उदित होता है उसी प्रकार भगवान बलराम प्रकट हो गये।। चंद्रमा तो हमेशा उदित ही रहता है किन्तु सागर किनारे से देखने वाले को यह भ्रम होता है कि चन्द्रमा सागर के उदर से निकल रहा है। ठीक इसी प्रकार भगवान जब प्रकट होते हैं तो देखने वाले को यह भ्रम होता है कि भगवान गर्भ से प्रकट हो रहे हैं। 
श्रीगोपाल चम्पु के अनुसार अत्यन्त शुभ समय दशायुक्त चौदहवें श्रावण मास के प्रथमार्द्ध में श्रवणा नक्षत्र में श्रीबलराम जी प्रकट हुये । श्री गर्ग संहिता के अनुसार उअ समय देवतायों ने आसमान से फूलों की वर्षा प्रारम्भ कर दी थी। बादल वर्षा कर रहे थे। भगवान की अंगकान्ति से सारा भवन जगमगा गया था। श्री नन्दराय जी ने शिशु के जात-कर्म संस्कार करवा कर ब्राह्मणों को दस लाख गायें दान में दीं थीं। गोपों को बुलवा कर महामंगलमय उत्सव का आयोजन किया था। श्रीबलराम जी का प्रकाश केवल पाँच दिन रोहिणी जी के गर्भ के भीतर रहा था। देवल, देवरात, वसिष्ठ, बृहस्पति, नारद, श्रीवेदव्यास, इत्यादि कई ॠषि आपके दर्शन करने आये थे व स्तुति की थी। श्रीव्यास जी ने कहा, 'आप देवताओं के अधिपति और कामपाल हैं । आप साक्षात अनन्त हैं, बलराम हैं। आप धरणीधर, पूर्ण-स्वरूप, स्वयं-प्रकाश संकर्षण हैं। हे रेवती-रमण, आप बलदेव व श्रीकृष्ण के अग्रज हैं। आप ही बल, बलभद्र, तथा ताल के चिन्ह युक्त ध्वजा धारण करने वाले हैं। आप ही नीलवस्त्रधारी, गौर-वर्ण, व रोहिणी-नन्दन हैं। आपकी जय हो। '
इस प्रकार अनेक स्तुतियाँ कर सभी आपको प्रणाम कर लौट गये।

बोलिये भगवान बलराम की जय !

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