सोमवार, 15 अगस्त 2016

जब भगवान वहीं रुक गये और उनकी मूर्ती चली गयी।

एक बार भगवान श्रीचैतन्य महाप्रभु जी अपने भाई श्रीनित्यानन्द प्रभु जी के साथ श्रील गौरी दास पण्डित जी के घर, अम्बिका-कालना (बंगाल) में उनसे मिलने गये।

श्रील गौरी दास पण्डित जी ने आपकी बहुत सेवा की।

जब भगवान वहाँ से चलने लगे, तो श्रील गौरी दास पण्डित जी ने आपसे कुछ दिन वहीं रुकने के लिये प्रार्थना की।

भक्त की इच्छा पूरी करने के लिये भगवान श्रीचैतन्य महाप्रभुजी ने घर के पास के नीमे के वृक्ष की लकड़ी से दो सुन्दर मूर्तियां  (श्रीविग्रह) बनाईं। एक मूर्ति श्रीचैतन्य महाप्रभु जी की व एक श्रीनित्यानन्द प्रभुजी की। 

तब श्रीचैतन्य महाप्रभु जी ने श्रील गौरीदास पण्डित जी से कहा कि आप इन विग्रहों की सेवा करना, इनमें और हममें कोई अन्तर नहीं है।

श्रील गौरी दास पण्डित जी तब चार थालियों में भोजन परोसा और सभी के आगे रखा।

भगवान की अचिन्तय शक्ति के प्रभाव से श्रीचैतन्य महाप्रभुजी, श्रीनित्यानन्द प्रभुजी, व दोनों मूर्तियों ने साक्षात् भाव से भक्त के आगे भोजन किया।

भोजन के बाद जब दोनों भाई चलने लगे, तो श्रील गौरीदास पण्डित जी ने कहा की आप मत जाइये, अभी कुछ देर और रूकिये।

जैसे ही उन्होंने दोनों भाईयों (श्रीचैतन्य महाप्रभुजी व श्री नित्यानन्द प्रभुजी) को रोका, तो उनके श्रीविग्रह चलने लगे। श्रील गौरीदास पण्डित जी यह देख कर हैरान रह गये।  तब श्रीचैतन्य महाप्रभु जी ने उनसे कहा - या तो हम दोनों यहाँ रहेंगे, या फिर ये दोनों (मूर्तियां) यहाँ रहेंगी। फैसला अपको करना है। 

श्रील गौरी दास पण्डित जी ने जब यह कहा कि आप रूकिये तो वो दोनों मूर्तियां दरवाज़े की ओर चलने लगीं। 

गौरीदास जी ने फटाफट जाकर उन्हें रोका तो श्रीचैतन्य महाप्रभु व श्री नित्यानन्द प्रभु जी दरवाज़े की ओर चल दिये। 

गौरी दास जी ने जब इन्हें रोका तो दोनों मूर्तियां चलने लगीं। 

जब ये ही चलता रहा तो श्रीमहाप्रभु जी ने पुनः उनसे कहा - एक को चुनें।  हम सक्षात् भाव से तथा मूर्ति (श्रीविग्रह) के रूप में हैं। इन दोनों जोड़ों (युगल) में से जिस जोड़े को आप ठहरने के लिये कहेंगे, वही रुकेग, दूसरा चला जायेगा। 
इस पर श्रील गौरीदास पण्डित जी ने विग्रह युगल (मूर्ति का जोड़ा) को जाने के लिये कहा और भगवान श्रीचैतन्य महाप्रभुजी तथा श्रीनित्यानन्द प्रभुजी को रहने के लिये कहा। 

श्रील गौरीदास पण्डित जी की इच्छा को पूरा करने के लिये वो मूर्तियों (विग्रह - युगल) चले गये और श्री महाप्रभु - श्रीनित्यानन्द जी उनके मन्दिर में चले गये।

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