बुधवार, 21 अक्तूबर 2015

मुझे बहुत गुस्सा आता है?

 असंकल्पात् जयेत कामः

तथा

कामात क्रोधोऽभिजायते

शास्त्रों के इन वचनों के अनुसार व्यक्ति के अन्दर जितनी ज्यादा इच्छायें होंगीं, उतना ही अधिक उसका क्रोध भी होगा। क्योंकि यह स्वभाविक ही है कि व्यक्ति की सारी इच्छायें पूरी नहीं हो पातीं। और जब व्यक्ति की कोई इच्छा पूरी नहीं होती तो वो झुंझला जाता है या क्रोधित हो जाता है। 
व्यक्ति की इच्छायें कम हों, उसके लिये यह जरूरी है कि व्यक्ति अपने कर्तव्य निष्ठा के साथ पूरा करे परन्तु संकल्प ज्यादा न करे।

भगवान के प्रति जितनी शरणागति अधिक होगी, यह सांसारिक संकल्प व इच्छायें अपने आप कम होंगींं। या यूँ कहें कि जैसे जैसे हमारी भगवान के प्रति शरणागति बढ़ती चली जाती है, जैसा जैसा हमारा भगवान के प्रति प्रेम बढ़ता चला जाता है, वैसे वैसे अनुपात में ही हमारे संकल्प, हमारी इच्छायें व हमारा क्रोध कम होता चला जाता है।

श्रीमद् भगवद् गीता के 16वें अध्याय के 21वें श्लोक के अनुसार क्रोध नरक का एक दरवाज़ा है, जिसके द्वारा क्रोधी व्यक्ति नरक में जाता है। नरक और मोक्ष का सम्बन्ध एक दूसरे के विपरीत है। यदि हम मोक्ष चाहते हैं तो हमें नरक के दरवाज़े स्वरूप इस क्रोध को छोड़ना होगा और भगवान के प्रति अपनी शरणागति को बढ़ाना होगा।

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