शनिवार, 17 अक्तूबर 2015

जब किसी ने आपके माता-पिता से कहा कि इस बालक की उम्र बहुत कम है………

आप जगद्गुरु श्रील भक्ति सिद्धान्त सरस्वती गोस्वामी ठाकुर प्रभुपाद जी के उन शिष्यों में से एक हैं, जिन्होंने प्रभुपाद्जी का उस समय दर्शन किया जब उन्होंने संन्यास भी नहीं लिया था तथा जो श्रीमहाप्रभुजी के श्लोक 'तृणादपि सुनीचेन' के मूर्ति स्वरूप हैं।

माया के चंगुल में जकड़े श्रीकृष्ण-विमुख जीवों का सही पथ-प्रदर्शन करने के लिए भगवान श्रीकृष्ण्जी ने ही आपको अपने गोलोक धाम से इस धरातल पर भेजा था। इस धरातल पर आपका प्राकट्य 18 अक्तूबर, सन् 1898 में गाँव गंगानन्दपुर, ज़िला यशोहर, बंगलादेश में हुआ। यशोहर ज़िले में ही हमारे पूर्वाचार्य, श्रील नरोत्तम  ठाकुरजी के गुरुजी, श्रीलोकनाथ गोस्वामी तथा जगद्-गुरु श्रील प्रभुपाद जी के कई पार्षदों ने प्रकट-लीला की। आपके पिताजी का नाम श्रीतारिणी चरन चक्रवर्ती तथा माताजी का नाम श्रीमती राम रंगिनी देवी था।

किसी ने आपके माता-पिता को बताया कि यह बालक है तो बहुत सुन्दर लेकिन इसकी उम्र बड़ी कम है। अतः वहाँ की प्रथा के अनुसार बालक को शिव-मन्दिर में ले जाकर शिव जी के चरणों में रख दिया। बालक के माता-पिता इसलिये भी डरे हुए थे क्योंकि इस बालक से पहले माता राम रंगिनी देवीजी ने एक कन्या को  जन्म दिया था जो कि चार वर्ष तक ही जीवित रही।  उसके बाद एक पुत्र हुआ जब
वह लगभग एक वर्ष का हुआ तो उसकी भी मृत्यु हो गयी।

बच्चे को शिवजी के चरणों से उठाने से पहले शिव-मन्त्रों का उच्चारण किया गया। बच्चे को शिवजी का आशीर्वाद दिलाया गया व प्रथानुसार धाई माँ ने शिव-चरणों से बालक को उठाया। और तीन कौड़ी लेकर बालक को श्रीतारिणी चन्द्र चक्रवर्ती जी को दे दिया। चूंकि शिवजी के आशीर्वाद से आपको लम्बी उम्र मिली इसलिए आपके अड़ोस-पड़ोस के लोग आपको शिवेर-वर पुत्र कहते थे। थोड़ा बड़ा होने पर गाँव के लोग आपको आपकी माताजी के द्वारा दिये स्नेह भरे 'तिनु' नाम से बुलाते थे। आपके माता-पिता जी प्रसिद्ध स्मार्त-ब्राह्मण चक्रवर्ती कुल के थे, उन्होंने आपको नाम दिया - श्री पद्मभूषण।

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