शुक्रवार, 16 अक्तूबर 2015

मन बहुत चंचल है, इसे कैसे शान्त किया जाए?

इसके लिए भगवान श्रीकृष्ण हमें 'अभ्यास योग' एवं 'वैराग्य' के प्रयास को बार - बार करने का परामर्श देते हैं।
'अभ्यास' का अर्थ है बार-बार प्रयास करना।
जबकि 'वैराग्य' के दो पहलु हैं -- जागतिक नाशवान पदार्थों के प्रति
अनासक्ति एवं शाश्वत - वस्तु -- श्रीकृष्ण के प्रति आसक्ति।

हमें किसी भी परिस्थिति में हताश नहीं होना चाहिए व किसी भी परिस्थिति में भजन बन्द नहीं करना चाहिए। हम जितनी मात्रा में आध्यात्मिक विचारों को, जोकि भारी और प्रभावशाली होते हैं, अपने हृदय में स्थान देंगे, उतनी ही मात्रा में जागतिक विचार, जो कि हल्के होते हैं, बाहर निकल जाएँगे।

हम इन्द्रियों की इच्छा-पूर्ति करने में एक प्रकार का क्षणिक सुख प्राप्त करते हैं। इन्द्रियों से प्राप्त होने वाले सुख का वह भ्रम हमें बलपूर्वक पाप-कर्मों की ओर खींचता है, जिसका अन्तिम परिणाम पीड़ा है। 
जब हम इन्द्रिय-तृप्ति के हानिकारक परिणाम को वास्तव में अनुभव कर लेंगे तो हम ऐसा करने से अपने आप को रोकेंगे। 

यदि हम आग में घी डालेंगे तो आग अधिक भड़केगी। इसी प्रकार यदि हम कामनाओं - वासनाओं को पूरा करते रहेंगे तो कामग्नि और अधिक भड़केगी, यह बुझेगी नहीं। 

कामनाओं को पूरा करते रहना, कामना-वासना से छूटकारा पाने का सही
तरीका नहीं है। 

हाँ, यदि हम एक साथ काफी अधिक मात्रा में घी डाल दें, तो आग बुझ जाएगी। इसी प्रकार यदि हमारे मन में पूर्ण-वस्तु श्रीकृष्ण के
लिए प्रबल उत्कण्ठा होगी तो वह प्रबल उत्कण्ठा ही जागतिक कामनाओं व इन्द्रिय-तृप्ति की वासनाओं की आग को बुझा देगी। 

-- प्रात: स्मरणीय श्रील भक्ति बल्लभ तीर्थ गोस्वामी महाराज जी

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