रविवार, 12 जुलाई 2015

बगैर दान किये, कैसे धन मिलता है?

बहुत पहले समय की बात है, काम्पिल्य शहर में सुमेधा नामक एक गरीब ब्राह्मण था। वह बहुत धर्मी-कर्मी था। उसकी पत्नी का नाम पवित्रा था। वह भी बहुत धार्मिक थी।
भीक्षा माँग कर दोनों का गुज़ारा चलता था।

ब्राह्मण की पत्नी अपने पति की सेवा बहुत निष्ठा से करती थी। जब कोई अतिथि आता तो वह अपनी भूख की चिन्ता न करके अतिथि की खूब सेवा - सत्कार करती थी। इस प्रकार भूखा रहने पर भी उसके चेहरे पर उदासी नहीं आती थी। वह कभी भी अपने पति से घर में अन्न न होने की शिकायत नहीं करती थी।

उसका ऐसा अटूट प्यार देख कर ब्राह्मण सुमेधा ने अपने भाग्य को धिक्कारतेहुये अपनी पत्नी से कहा - हे प्रिये! मैं बड़े-बड़े सेठ के यहाँ से भी बहुत धन इकट्ठा नहीं कर पाता हूँ, जिससे हमारी गरीबी दूर हो सके।
तुम्हारी आवश्यकताओं को तो मैं क्या पूरा कर पाऊँगा? धन प्राप्ति के लिये यदि तुम मानो, तो मैंं परदेश जाकर कोशिश करना चाहता हूँ। 

ब्राह्मणी ने कहा - हे विप्रवर! शायद पूर्व जन्म में मैंने और आपने किसी को थोड़ा सा भी धन अथवा जमीन का दान नहीं दिया। लगता है कि हमनें अन्न भी किसी को दान नहीं किया। इसी कारण से हमारी यह स्थिति हो गई है। मैं आपके बिना नहीं रह सकती। आपके ना होने से लोग मुझे दुर्भाग्यशाली समझ कर, गलत निगाहों से देखेंगे।
इसलिये यहाँ पर जो कुछ भी मिलता है, उसी में संतोष करो।

एक दिन उनके यहाँ कौण्डिन्य मुनि आये। सुमेधा ने उनका स्वागत किया और उन्हें बिठाया। उनके चरण धोये और आरती की। फिर उन्हें भोजन कराया। जब मुनि विश्राम करने लगे तो ब्राह्मण-पत्नी ने उनसे जिज्ञासा की - हे भगवन्! यह गरीबी कैसे समाप्त होती है? बगैर दान किये, कैसे धन मिलता है? हमारे बहुत भाग्य जो आप पधारे, आपकी कृपा से हमारी दरिद्रता अवश्य चली जायेगी। इस गरीबी को खत्म करने का कोई उपाय बताइये।

पवित्रा ब्राह्मणी की बात सुनकर मुनि ने समस्त प्रकार के पाप, दुःख और गरीबी का नाश करने वाली उत्तम व्रत की कथा सुनाई और कहा की पुरुषोत्तम मास में कृष्ण-पक्ष की सर्वश्रेष्ठ 'परमा' एकादशी सब कुछ देने वाली है। यह तिथि भगवान को प्यारी है। इसकी उपासना से मनुष्य के पास पर्याप्त धन, अन्न आदि आ जाता है। अतः इस व्रत का पालन करो।

मुनि की आज्ञा से दोनों ने व्रत को विधि अनुसार पालन किया। एक दिन उनके यहाँं एक राज-कुमार आया। उनकी सेवाओं से प्रसन्न हो कर, उसने उन दोनों को एक मकान, गाय, इत्यादि प्रदान की। 

जैसे मनुष्यों में ब्राह्मण, चार पैर के पशुओं में गाय, उसी प्रकार महीनों
में पुरुषोत्तम तथा एकादशियों में पद्मिनी और परमा नामक एकादशियाँ सर्वश्रेष्ठ हैं। मनुष्य जन्म पाकर जो, एकादशी व्रत का पालन नहीं करते, वे 84 लाख योनियों में जन्म लेकर दुःखी रहते हैं। बहुत से पुण्यों के प्रभाव से दुर्लभ मनुष्य जन्म मिलता है और एकादशी व्रत पालन न करने पर यह दुर्लभ जीवन व्यर्थ हो जाता है।

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