रविवार, 17 मई 2015

पश्चिम बंगाल के एक शहर मेदिनीपुर में एक भूतिया बंगला था........

पश्चिम बंगाल के एक शहर मेदिनीपुर  में एक भूतिया बंगला था। वहाँ 
पर कोई आता-जाता नहीं था। हरि-इच्छा से वह बंगला गौड़ीय मठ को मिल गया।

कुछ समय के उपरान्त जब भक्त लोग वहाँ सफाई, इत्यादि करने के लिए पहुँचे तो दिन ढल चुका था। सभी ने वहीं रात रहने का फैसला कर लिया।

जब रात को सब सो रहे थे तो अचानक बंगले के एक कमरे से बहुत ज़ोर ज़ोर से आवाज़ आने लगी। सभी भक्त वहाँ इकट्ठे हो गये। भक्तों ने सोचा की श्रीकृष्ण-नाम कीर्तन करना होगा।
रात्रि में मृदंग-करताल सहित कीर्तन होने लगा। यह क्रम कुछ दिनों तक चला।  कुछ दिनों के बाद कमरे में आवाज़ शान्त हो गयी । परन्तु कोने वाले कमरे में होने लगी। श्रील भक्ति बल्लभ तीर्थ गोस्वामी महाराज जी जोकि उस समय ब्रह्मचारी थे , ने बताया की कमरे में जब मैं सोता था तो अचानक सब दरवाज़े-खिड़की खुल जाते थे। फिर हमने वहाँ पर भी हरि-नाम-कीर्तन करना शुरु कर दिया।
कुछ दिनों के बाद अनुभव किया गया कि बंगले में तो सब शान्त हो गया किन्तु बाहर आँगन में पेड़ ज़ोर-ज़ोर से हिलने लगता जबकी हवा बिल्कुल भी चल नहीं रही होती थी। तथा रात को स्पष्ट दिखाई देता था कि जैसे कोई स्त्री सफेद कपड़े पहन कर कुएँ से पानी निकाल रही है। दूर से पानी में बाल्टी गिरने की व रस्सी के खिंचने की आवाज़ भी आती थी। परन्तु नज़दीक जाने से कोई दिखता नहीं था, और आवाज़ भी बन्द हो जाती थी।

वैष्णवों के इधर-उधर टहलने व श्रीहरिनाम करने के प्रभाव से धीरे धीरे ये सब भी बन्द हो गया।

आज भी वहाँ पर मठ है और ये सब बातें इतिहास की तरह याद की जाती हैं।

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