गुरुवार, 14 मई 2015

श्रेष्ठ महात्माओं के नाम के आगे 108 क्यों?

इस ब्रह्माण्ड में सब से ऊपर नक्षत्र होते हैं जिनकी संख्या 27 होती है। यह नक्षत्र चारों दिशाओं में घूमते रहते हैं । जो महापुरुष हमारी नज़रों में सर्वोच्च होते हैं, उनकी उत्तमता को दर्शाने के लिए उन्हें नक्षत्रों वाला सम्मान दिया जाता है। अब चूंकि नक्षत्रों की संख्या 27 होती है और वे चारों दिशाओं में घूमते हैं, इस दृष्टि से 27 x 4 = 108 होता है। 

हमारे ॠषियों ने जिन महापुरुषों को सबसे अधिक सम्मान देना होता है और जो विश्व में चारों ओर घूम-घूम कर भगवान की महिमा का प्रचार करते हैं, उन परिव्राजक महापुरुषों के नाम के आगे 108 लगाये जाने का विधान बनाया है।
दुनिया में जितने भी प्राणी हैं , देवी-देवता हैं, अथवा भगवान के अवतार हैं ---- उन सब के मूल में श्रीकृष्ण हैं। उनके वृन्दावन लीला में 108 सर्वोत्तम मधुर रस के भक्त हैं तथा द्वारिका लीला में 108 प्रमुख पटरानियाँ हैं । श्रीकृष्ण सर्वोत्तम तथा उनके द्वारिका व वृन्दावन में रहने वाले 108 मधुर रस के भक्त सर्वोत्तम, इस दृष्टि से जिनको हम सर्वोत्तम की पदवी देना चाहते हैं अथवा जिनको हम सबसे श्रेष्ठ बताना चाहते हैं, उनके नाम के आगे हम 108 संख्या का प्रयोग करते हैं।
महान वैष्णवाचार्य श्री गोपाल भट्ट गोस्वामी जी के अनुसार वैष्णव संन्यासियों के 108 नाम होते हैं। समाज को यह बताने के लिए कि ये संन्यासी अन्य संन्यासियों से श्रेष्ठ है, उनके नाम के आगे 108 लगाया जाता है।

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