भगवान श्रीचैतन्य महाप्रभु जी के भक्त थे श्रील अभिराम ठाकुर ।
एक बार आप एक टूटी दिवार के उपर बैठकर दातुन कर रहे थे।
तभी आपके पास एक व्यक्ति आया और उसने आपसे कहा कि एक बहुत विद्वान व्यक्ति आपसे शास्त्रार्थ करने आ रहा है। वो व्यक्ति इतना ज्ञानवान है कि उसने एक शेर को अपनी सवारी बनाया हुआ है, और लगाम (रस्सी) के रूप में उसके हाथ में सर्प हैं।
आपने उस व्यक्ति से कहा कि ऐसे सिद्ध व्यक्ति को कष्ट नहीं देना चाहिये। वे हमारे पास आयें, इससे अच्छा है कि हमें ही उनके पास चलना चाहिये।
ऐसा कहकर श्रील अभिराम ठाकुर ने उस व्यक्ति को इशारे से अपने पास बुला कर दिवार पर बिठा लिया। इससे पहले कि वो व्यक्ति कुछ कह पाता, आपने दीवार से कहा - 'चलो! उस योगी पुरुष के पास चलें।'
उस व्यक्ति के देखते ही देखते जिस दीवार के ऊपर आप दोनों बैठे हुए थे, वो चलने लगी।
वह दीवार आप दोनों के लेकर उस योगी पुरुष के पास आ गयी।
योगी ने जब यह देखा तो उसका घमण्ड जाता रहा, और वह आपका अनुगत भक्त बन गया।
एक बार आप एक टूटी दिवार के उपर बैठकर दातुन कर रहे थे।
तभी आपके पास एक व्यक्ति आया और उसने आपसे कहा कि एक बहुत विद्वान व्यक्ति आपसे शास्त्रार्थ करने आ रहा है। वो व्यक्ति इतना ज्ञानवान है कि उसने एक शेर को अपनी सवारी बनाया हुआ है, और लगाम (रस्सी) के रूप में उसके हाथ में सर्प हैं।
आपने उस व्यक्ति से कहा कि ऐसे सिद्ध व्यक्ति को कष्ट नहीं देना चाहिये। वे हमारे पास आयें, इससे अच्छा है कि हमें ही उनके पास चलना चाहिये।
ऐसा कहकर श्रील अभिराम ठाकुर ने उस व्यक्ति को इशारे से अपने पास बुला कर दिवार पर बिठा लिया। इससे पहले कि वो व्यक्ति कुछ कह पाता, आपने दीवार से कहा - 'चलो! उस योगी पुरुष के पास चलें।'
उस व्यक्ति के देखते ही देखते जिस दीवार के ऊपर आप दोनों बैठे हुए थे, वो चलने लगी।
वह दीवार आप दोनों के लेकर उस योगी पुरुष के पास आ गयी।
योगी ने जब यह देखा तो उसका घमण्ड जाता रहा, और वह आपका अनुगत भक्त बन गया।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें