शनिवार, 4 अप्रैल 2015

नूपुर तिलक का प्रचलन कैसे हुआ?

भगवान श्रीचैतन्य महाप्रभु जी के एक भक्त थे श्रील दु:खी कृष्ण दास जी। आप श्रील हृदय चैतन्य जी के शिष्य थे। गुरुजी के आदेश के अनुसार आप वृन्दावन में जाकर भजन करने लगे।

वहाँ जाकर आप श्रील जीव गोस्वामी जी से शास्त्रों का अध्ययन करने लगे।
जब श्रील हृदय चैतन्यजी ने दुःखी कृष्ण दासजी की भजन निष्ठा की बात सुनी तो उन्होंने श्रील जीव गोस्वामीजी को पत्र लिखा कि वे दुःखी कृष्ण दास को अपना शिष्य समझ कर उसका पालन करें। 

श्रील जीव गोस्वामी जी ने आपको श्यामानन्द नाम प्रदान किया था।
एक दिन श्रील श्यामानन्द प्रभु श्रीकृष्ण-प्रेम के आवेश में रास-मण्डल में झाड़ू से सफाई कर रहे थे कि उसी समय आपको राधारानी जी की अलौकिक कृपा से वहाँ पर राधारानी जी के श्रीचरणों का एक नूपुर मिला। श्रील श्यामानन्द प्रभुजी ने अत्यन्त उल्लास से साथ उस नुपुर को अपने मस्तक से स्पर्श किया, जिससे उनके ललाट पर नूपुर जैसा ही तिलक प्रकट हो गया। यहीं से श्रीश्यामानन्द प्रभुजी के परिवार (सम्प्रदाय) में नूपुर तिलक का प्रवर्तन हुआ।

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