सोमवार, 8 दिसंबर 2014

…लम्बे समय तक सूली पर निर्विकार रूप से जीवित अवस्था में देखकर…

प्राचीन काल में एक ॠषि थे माण्डव्य जो बहुत बुद्धिमान, सत्यनिष्ठ व तपस्वी स्वभाव के थे।

एक बार आप अपने आश्रम के द्वार पर वृक्ष के नीचे अपनी अपनी भुजाएँ ऊपर कर एवं मौन व्रत धारण कर काफी लम्बे समय से घोर तपस्या कर रहे थे। एक दिन कुछ लुटेरे लूट का सामान लेकर उधर से गुज़रे। नगर के पहरेदार उनको पकड़ने के लिए उनके पीछे दौड़ रहे थे।

पहरेदारों से पकड़े जाने के डर से लुटेरे चोरी का सामान ॠषि के आश्रम में
रखकर वहीं  इधर-उधर छिप गये। सिपाही भागते-भागते आश्रम में पहुँचे और माण्डव्य ॠषि को लुटेरों के बारे में पूछा किन्तु ॠषि ने कोई उत्तर नहीं दिया।

जब ॠषि की तरफ से कोई जवाब नहीं आया तो सैनिक आपके आश्रम में प्रवेश कर गये। उन्होंने चोरी का माल व लुटेरों को वहीं छिपा पाया।

उन्होंने लुटेरों को बाँधा और राजा के पास ले आये।
माण्डव्य ॠषि के आश्रम से लुटेरों के मिलने के कारण एवं सिपाहियों द्वारा पूछे जाने पर भी कोई उत्तर ने देने के कारण सिपाहियों को माण्डव्य ॠषि पर भी सन्देह हो गया था और वे आपको भी गिरफ्तार कर लाये थे।
प्राचीन काल में मनुष्यों में न्याय-परायणता और धर्म का भय अधिक था। वे झूठा आरोप लगाकर किसी का अनुष्ट नहीं करते थे।  इसीलिए किसी को दोषी ठहराने पर राजा उसे सच समझ लेते थे एवं उसे उचित दण्ड देते थ। अतः महाराज ने माण्डव्य ॠषि को कुछ पूछे बिना एवं विचार किए बिना ही लुटेरों का एवं मुनि का वध कर देने का आदेश दे दिया। राजपुरुषों ने राजा के आदेश से
सब को सूली पर चढ़ा दिया और लूट का माल लाकर राजा को दे दिया। सूली पर चढ़ने के कारण सबकी मृत्यु हो गयी किन्तु बहुत समय तक सूली पर चढ़े रहने व भूखे रहने पर भी धर्मात्मा महायोगी माण्डव्य ॠषि की मृत्यु नहीं हुई। आपने तपस्या के बल से प्राणों को रोक कर ॠषियों को अपने पास बुलाया।

ॠषि, आपको सूली पर चढ़ा व वहीं पर उसी अवस्था में तपस्या में लगे देख संतप्त और मर्माहत हुए। वे सव्ही ॠषि, पक्षियों के रूप में माण्डव्य ॠषि के पास पहुँचे थे। माण्डव्य ॠषि के पास आकर सभी ने अपना पक्षी रूप त्याग, अपना वास्तविक रूप धारण कर माण्डव्य मुनि से उनके दुःख के बारे में पूछा। माण्डव्य ॠषि ने ॠषियों से कहा कि मैं किसे अपराधी बताऊँ? दूसरा कोई व्यक्ति मेरे इस दुख का कारण नहीं है।
राजपुरुष भी आपको लम्बे समय तक सूली पर निर्विकार रूप से जीवित अवस्था में देखकर आश्चर्यचकित हुए और उन्होंने ये समाचार महाराज को सुनाया। ये सुनकर और भयभीत होकर महाराज उसी समय मुनि के पास आये तथा अनुतप्त हो मुनि से क्षमा प्रार्थना करने लगे। 

राजा के दीनता-पूर्ण वाक्य सुन माण्डव्य ॠषि प्रसन्न हो गये। स्वयं राजा ने आपको उतारा किन्तु बहुत प्रयास करने पर भी वो शूल को आपके शरीर
में से नहीं निकाल पाये। तब उन्होंने शूल के बाहर के भाग को काट दिया। माण्डव्य ॠषि सूली के अन्दर के भाग को धारण करते हुये पुनः तपस्या में लग गये। उसी तपस्या के कारण आपने दुर्लभ सभी पुण्य लोकों को जय कर लिया। अणि अर्थात् सूली का अग्रभाग धारण करने के कारण ही आप अणि माण्डव्य के नाम से विख्यात हुये।

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