बुधवार, 10 दिसंबर 2014

श्रील प्रभुपाद के आशीर्वचन

जगद् - गुरु श्रील भक्ति सिद्धान्त सरस्वती गोस्वामी ठाकुर प्रभुपाद की उपदेशावली -

1) श्रीहरिनाम-ग्रहण और भगवान का साक्षात्कार, दोनों एक ही हैं।

2) सब, परस्पर मिलकर तथा एक उद्देश्य लेकर, हरि-सेवा करें।

3) दूसरे के स्वभाव की निन्दा न करके, अपना ही सुधार करना, यही मेरा उपदेश है।

4) निर्गुण - वस्तु का साक्षात्कार करने के लिए, एकमात्र कान को छोड़कर, और कोई उपाय नहीं है।


5) खुशामद करने वाला गुरु या प्रचारक नहीं होता।

6) सरलता का दूसरा नाम ही वैष्णवता है। परमहंस वैष्णव-दास-गण सरल होते हैं, इसलिए वे ही, सर्वोत्कृष्ट ब्राह्मण हैं।

7) आचार- रहित प्रचार, कर्म के अन्तर्गत है।

8) भगवान और भक्त की सेवा करने से ही, गृहव्रत-धर्म क्षीण होता है।


9) हम लोग, इस जगत में अधिक दिन नहीं रहेंगे, हरिकीर्तन करते-करते हमारा देहपात होने से ही, इस देह-धारण की सार्थकता है।

श्रील भक्ति सिद्धान्त सरस्वती गोस्वामी ठाकुर प्रभुपाद की जय !!!

आपके तिरोभाव तिथि पूजा महा-महोत्सव की जय !!!!

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