बुधवार, 24 दिसंबर 2014

सभी ज्ञानों का सार

श्रील भक्ति विनोद ठाकुर जी  कहते हैं -- 'ज्ञान का सार है कि जीवन अनित्य है एवं अनेक विपदाओं से ग्रस्त है। श्रीहरिनाम का पूर्ण आश्रय लेकर के अपने कर्तव्य-कर्मों को करते रहना चाहिये।

श्रीहरि-नामामृत का पान करके त्रितापों की जलन को शान्त करें। इस चौदह-भुवनों के ब्रह्माण्डों में हरिनाम से अधिक मूलयवान कुछ भी नहीं है।
साधु-संग में दस तरह के नामापराधों से रहित शुद्ध-नाम का कीर्तन ही सांसारिक कष्टों की निवृति व पूर्णानन्द की प्राप्ति का एक मात्र उपाय है। भक्ति में उन्नति व शाश्वत मंगल लाभ करने के लिए श्रीकृष्ण-विमुख सांसारिक लोगों के प्रतिकूल संग का त्याग आवश्यक है।'  -- श्रील भक्ति बल्लभ तीर्थ गोस्वामी महाराज जी।

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