श्रीकृष्णद्वैपायन वेदव्यास मुनि जी का पावन चरित्र श्रीमद्भागवत-शास्त्र, विष्णुपुराण एवं महाभारत इत्यादि विभिन्न शास्त्रों में वर्णित हुआ है।
भगवान श्रीहरि ने मानव जाति की समझ और धारण-शक्ति को कम देखकर अपने 17वें अवतार में सत्यवती जी को अवलम्बन करके श्रीकृष्णद्वैपायन जी के रूप में अवतार लिया।
मानव के कल्याण के लिये आपने वेद रूपी वृक्ष की विभिन्न शाखाओं का विस्तार किया।
आपने ही महाभारत, 18 पुराण लिखे, तथा वेदों का विभाग किया।

आप कृष्ण-द्वीप में धीवर-कन्या, मत्स्यगंधा (सत्यवती) व पराशर मुनिजी को अवलम्बन करके प्रकट हुये।
कृष्ण-द्वीप पर जन्म ग्रहण करने के कारण आपका नाम कृष्णद्वैपायन एवं वेदों का विभाग करने के कारण आपका नाम वेद-व्यास हुआ।
आपके औरस से व विचित्रवीर्य की दोनों पत्नियों के गर्भ से धृतराष्ट्र और पाँडु एवं दासी के गर्भ से विदुर जी का जन्म हुआ। आपके वरदान से ही संजय को दिव्य-दृष्टि प्राप्त हुई, जिसके कारण संजय धृतराष्ट्र को युद्ध का विवरण सुना पाये थे।
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आपके योग के प्रभाव से कौरव वंश की स्त्रियों ने युद्ध के पश्चात अपने मरे हुए सम्बन्धियों के दर्शन किये थे।
आप ही ने श्रीगणेशजी को महाभारत लिखने के लिए आमन्त्रित किया, तो गणेश जी ने कहा कि एन बार उनकी
लेखनी रुक गई तो वे और नहीं लिखेंगे। इस पर वेदव्यास जी ने भी कहा कि आप भी बिन समझे कुछ नहीं लिखेंगे। इसीलिए वेदव्यासजी ने महाभारत में व्यासकूट नाम से जगह-जगह पर कठिन-कठिन श्लोकों की रचना की।
भगवान श्रीहरि ने मानव जाति की समझ और धारण-शक्ति को कम देखकर अपने 17वें अवतार में सत्यवती जी को अवलम्बन करके श्रीकृष्णद्वैपायन जी के रूप में अवतार लिया।
मानव के कल्याण के लिये आपने वेद रूपी वृक्ष की विभिन्न शाखाओं का विस्तार किया।
आपने ही महाभारत, 18 पुराण लिखे, तथा वेदों का विभाग किया।

आप कृष्ण-द्वीप में धीवर-कन्या, मत्स्यगंधा (सत्यवती) व पराशर मुनिजी को अवलम्बन करके प्रकट हुये।
कृष्ण-द्वीप पर जन्म ग्रहण करने के कारण आपका नाम कृष्णद्वैपायन एवं वेदों का विभाग करने के कारण आपका नाम वेद-व्यास हुआ।
आपके औरस से व विचित्रवीर्य की दोनों पत्नियों के गर्भ से धृतराष्ट्र और पाँडु एवं दासी के गर्भ से विदुर जी का जन्म हुआ। आपके वरदान से ही संजय को दिव्य-दृष्टि प्राप्त हुई, जिसके कारण संजय धृतराष्ट्र को युद्ध का विवरण सुना पाये थे।
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आपके योग के प्रभाव से कौरव वंश की स्त्रियों ने युद्ध के पश्चात अपने मरे हुए सम्बन्धियों के दर्शन किये थे।
आप ही ने श्रीगणेशजी को महाभारत लिखने के लिए आमन्त्रित किया, तो गणेश जी ने कहा कि एन बार उनकी
लेखनी रुक गई तो वे और नहीं लिखेंगे। इस पर वेदव्यास जी ने भी कहा कि आप भी बिन समझे कुछ नहीं लिखेंगे। इसीलिए वेदव्यासजी ने महाभारत में व्यासकूट नाम से जगह-जगह पर कठिन-कठिन श्लोकों की रचना की।
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