गुरुवार, 25 दिसंबर 2014

जब भगवान जगन्नाथ देव जी आपके साथ चल दिये

भगवान श्रीचैतन्य महाप्रभु जी के एक भक्त थे श्रील जगदीश पण्डित । श्रीमन् महाप्रभु जी के निर्देश से परवर्तीकाल में आप श्रीकृष्ण-भक्ति के प्रचार के लिये नीलाचल गये थे। श्रीपुरुषोत्तम धाम में श्रीजगन्नाथ जी के दर्शन करके श्रीजगदीश पण्डित जी प्रभु-प्रेम में आप्लावित हो गये व वहाँ से लौटते समय आप श्रीजगन्नाथजी के विरह में व्याकुल हो गये।

(पुरी में लाख-लाख व्यक्ति श्रीजगन्नाथजी के दर्शन को जाते हैं, किन्तु लौटते समय क्या किसी को भी विरह-व्याकुलता देखी जाती है?)

हो सकता है किसी भाग्यवान जीव के वह भाव उदित हों। वास्तव में जिसके हृदय में वह विरह-व्याकुलता होती है, उसके प्रति ही श्रीजगन्नाथ
देव की यथार्थ कृपा वर्षित हुई है, ऐसा प्रमाणित होता है, नहीं तो प्रमाणित नहीं होता कि उस पर श्रीजगन्नाथजी की यथार्थ कृपा हुई।

श्रीजगदीश पण्डित जी विरह-व्याकुल होकर क्रन्दन करते रहे तो श्रीजगन्नाथ देव जी ने कृपा परवश होकर स्वप्न में आपको निर्देश दिया कि आप उनका श्रीविग्रह लेकर सेवा करें।

भगवान जगन्नाथजी ने तत्कालीन महाराज को नव-कलेवर के समय उनका समाधिस्थ विग्रह श्रीजगदीश पण्डित को देने के लिए निर्देश दिया।

महाराज, आपको मिलकर अपने-आपको सौभाग्यवान समझने लगे। उन्होंने श्रीजगन्नाथ देव जी का समाधिस्थ विग्रह, श्रीजगदीश पण्डित को अर्पण किया। 
श्रीजगदीश पण्डित प्रभु ने श्रीजगन्नाथ देव जी से जिज्ञासा की कि आप उनके भारी विग्रह को किस प्रकार वहन करके ले जाएंगे। तब भगवान जगन्नाथदेव जी ने आपसे कहा कि वे खोखले लकड़ी के समान हल्के हो जाएँगे और उन्हें नए वस्त्र द्वारा आवृत करके एक लाठी के सहारे कन्धों पर रख कर वहन करना तथा जहाँ स्थापन करने की इच्छा हो, वहीं पर ही रखना होगा। श्रीजगदीश पण्डित प्रभु अपने संगी ब्राह्मणों की सहायता से श्रीमूर्ति वहन करते हुए चक्रदह (पश्चिम बंगाल) के अन्तर्गत गंगा के तटवर्ती यशड़ा श्रीपाट में आकर उपस्थित हुए।

श्रीजगदीश पण्डित प्रभु एक ब्राह्मण व्यक्ति के कन्धों पर श्रीजगन्नाथ देव
को रखकर गंगा में स्नान-तर्पण के लिए गए कि अकस्मात् श्रीजगन्नाथ देव अत्यन्त भारी हो गए। सेवक उन्हें कन्धे पर रखने में असमर्थ हो गया अतः उसने श्रीजगन्नाथजी को ज़मीन पर उतार दिया। श्रीजगदीश पण्डित प्रभु स्नान-तर्पण के बाद जब वापस आए तो जगन्नाथजी का ज़मीन पर अवतरण देख कर समझ गए कि श्रीजगन्नाथ देवजी ने यहीं पर ही अवस्थान करने की इच्छा की है।

श्रीजगन्नाथ देवजी के यशड़ा श्रीपाट में रहने के कारण श्रीजगदीश पण्डित प्रभु ने अपने घर मायापुर में न जाकर यशड़ा में ही अवस्थान करने का संकल्प लिया।
आज भी, वहाँ पर श्रीजगन्नाथ देव जी की सेवा-परिचालना का कार्य बड़े ही सुन्दर ढंग से 'श्रीचैतन्य गौड़ीय मठ' द्वारा संचालित होता है।

भगवान जगन्नाथ जी की जय !!!!

उनके भक्त श्रील जगदीश पण्डित की जय !!!!

यशड़ा धाम की जय!!!!

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