रविवार, 14 दिसंबर 2014

14 साल की आयु तक पाप के फल का भोग नहीं करना होगा

परमात्मा के तत्त्व को जानने वाले माण्डव्य ॠषि एन दिन धर्मराज के यहाँ, यम पुरी में गये। वहाँ धर्मराज को मिलने पर आपने उनसे पूछा कि आपने (ॠषि ने) ऐसा कौन सा दुष्कर्म किया था जिसके कारण आपको सूली पर चढ़ाया गया (कुछ समय पहले अज्ञानता से एक राजा ने आपको चोर समझ कर सूली पर चढ़ाने का आदेश दिया था) और काफी समय तक वैसे ही रहने दिया गया?

उत्तर में धर्मराज ने कहा कि बचपन में एक दिन आपने पतंगे के पिछले हिस्से में घास का तीखा टुकड़ा घुसा दिया था, जिस कारण आपकी ऐसी दुर्दशा हुई है। 


यह सुनकर माण्डव्य ॠषि क्रोध में बोल उठे - हे धर्मराज! बाल्य-अवस्था में मेरे किये हुए छोटे से अपराध के लिए आपने इतनी बड़ी सजा दी, इसलिए मैं अभिशाप दे रहा हूँ कि आप शूद्र-योनि में जन्म-ग्रहण करेंगे तथा मैं कर्मफल भोग करने के विषय में ये नियम बनाता हूँ कि कि 14 साल की आयु न होने तक पाप के फल का भोग नहीं करना होगा। इस आयु के बाद किये गये पाप का ही फल भोगना होगा।

माण्डव्य ॠषि के अभिशाप से ही धर्म ने विदुर रूप में शूद्र योनि में जन्म ग्रहण किया था। 

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