मंगलवार, 11 नवंबर 2014

तुलसीजी का पत्ता

यथा जातबलो वह्निर्दहते काननादिकम् । 
प्रावितं तुलसीपत्रं तथा दहति पातकम् ॥

प्रचण्ड अग्नि द्वारा जिस प्रकार सारा जंगल राख हो जाता है, उसी प्रकार तुलसी जी का पत्ता खाने से, तुलसी जी के तेज से सारे पाप जल जाते हैं।

यथा भक्तिरतो नित्यं नरो दहति पातकम्। 
तुलसीभक्षनात्तद्वत् दहते पापसंचयम्॥
प्रतिदिन भगवान श्रीहरि की भक्ति में नियुक्त रहकर जिस प्रकार व्यक्ति के सारे पाप भस्म हो जाते हैं, उसी प्रकार तुलसीजी का पत्ता खाने से सारे संचित पाप भस्म हो जाते हैं।

चान्द्रायणसहस्रस्य पराकाणां शतस्य च । 
न तुल्यं जायते पुण्यं तुलसी पत्र भक्षणात् ॥

श्रीहरिभक्ति सुधोदय नामक ग्रन्थ में श्रीकृष्ण कहते हैं कि एक तुलसी जी का पत्ता खाने से जितने प्रकार के पुण्य इकट्ठे होते हैं, उतने पाप तो एक हज़ार चान्द्रायण व्रत तथा सैंकड़ों प्रकार के व्रतों को करने से भी नहीं होते।

कृत्वा पाप सहस्राणि पूर्वे वयसि मानवः। 
तुलसी भक्षणान्मुच्यते श्रुतमेतत् पुरा हरे॥


स्वयं भगवान अपने मुख से कहते हैं -- यदि किसी व्यक्ति ने बचपन में हज़ारों तरह के या हज़ारों बार पाप किये भी हों तो वह उन सारे पापों के फल से बच जाता है -- तुलसी जी का पत्ता खाने से।

यक्तो यदि महापापैः सुकृतं नार्जितं क्वचित्।
ततापि गीयते मोक्षस्तुलसी भक्षिदा यदि॥

बहुत तरह के पापों से लिप्त व्यक्ति, किसी भी प्रकार के पुण्य से रहित व्यक्ति भी यदि तुलसी का पत्ता खा ले तो वह भी मुक्त हो जाता है।

लुब्धकेनात्म दहने भक्षितं तुलसीदलम्।
संप्राप्तो मत्पदं नूनं कृत्वा प्राणस्य संक्षयम्॥
स्वयं भगवान श्रीहरि कहते हैं कि प्राणियों को तड़पा-तड़पा कर मारने वाला शिकारी भी यदि किसी प्रकार तुलसी-पत्ता खाकर मरे तो वह भी मेरे सुखमय धाम में आ जाता है।

उपोष्य द्वादशीं शुद्धां पारणे तुलसीदलम्।
प्राशयेद्षदि विपेन्द्र अश्वमेधाष्टं लभेत्॥

अग्नि पुराण में कहा गया है कि शुक्ला-द्वादशी में व्रत करके अगले दिन पारण के समय व्यक्ति यदि तुलसी का पत्ता खा लेता है तो उसे आठ अश्वमेध यज्ञों का फल मिलता है।


किंचित्रमस्याः पतितं तुलस्या, दलं जलं वा पतितं पुनीतं।
लग्नाधिभालस्थलमालवाल - मृत्स्नापि कृत्स्नाघनाशनाय॥

इस तुलसीदेवी जी की आश्चर्यचकित कर देने वाली महिमा कहाँ तक बतायें -- तुलसी जी का टूटा हुआ पत्ता, तुलसी के वृक्ष से व उसके पत्ते से स्पर्श हुआ जल तथा तुलसीजी की जड़ की मिट्टी यदि मस्तक पर लगायी जाय तो इतना करने मात्र से व्यक्ति के सारे पाप खत्म हो जाते हैं।
(सभी श्लोक 'श्रीहरि भक्ति विलास' नामक ग्रन्थ से लिये गये हैं)







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