सोमवार, 3 नवंबर 2014

पवित्र कार्तिक मास में कुछ वृज दर्शन -- 9

दान घाटी -
श्रीकृष्ण की लीला में श्रीकृष्ण और उनके पक्ष के सखा एवं श्रीमती राधारानी और उनके पक्ष की गोपियों में जो प्रेम-कलह है वह व्रज की लीला के माधुर्य की चमत्कारिता को प्रकाशित करती है। प्रबल झगड़े में भी प्रेम की पराकाष्ठा विद्यमान है, जिसे साधारण बुद्धि से समझा नहीं जा सकता। इस प्रकार प्रेम माधुर्य की चमत्कारिता व्रज को छोड़ कर और कहीं भी देखने को नहीं मिलती।
एक समय श्रीवसुदेव जी ने बलदेव जी और श्रीकृष्ण की शान्ति की कामना से गर्ग ॠषि के दामाद भागुरि को प्रतिनिधि के रूप से नियुक्त करते हुये गिरिराज गोवर्धन के नीचे अवस्थित गोविन्द कुण्ड के तट पर यज्ञानुष्ठान किया था।

इस यज्ञानुष्ठान की खबत जब चारों तरफ फैल गई तो वृषभानुनन्दिनी श्रीमती राधारानी गुरुजनों की आज्ञा लेकर सखियों के साथ मक्खन बेचने के लिये उक्त यज्ञमण्डप की ओर चल पड़ीं।

इधर श्रीकृष्ण को पहले ही मालूम हो गया कि राधारानी और उनकी गोपियां यज्ञ-मण्डप की ओर का रही हैं। अतः वे शुल्क लेने के लिये सखाओं के साथ गोवर्धन में दान घाट के रक्षक के रूप में रास्ता रोक कर बैठ गये। वे जिस स्थान पर बैठे थे उसे 'कृष्ण वेदी' कहते हैं।

जब श्रीमती राधारानी सखियों के साथ वहाँ पहुँची तो श्रीकृष्ण शुल्क लेने वाले का वेश बनाकर उनसे राजा मदन को प्राप्त होने वाले पदार्थों को शुल्क के रूप में देने के लिये कहा।

इसी बात को लेकर दोनों में भीषण वाद-विवाद व झगड़ा आरम्भ हो गया। श्रीकृष्ण ने सखाओं के साथ रास्ता रोके रखा। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि जब तक वे मक्खन इत्यादि नहीं देंगे तब तक राधिका व सखियों को जाने नहीं देंगे।

जब झगड़ा चरम सीमा पर पहुँच गया तो पौर्णमासी के बीच में पड़ने से झगड़ा निपटा।

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