कंस के धोबी का घाट ही रजक घाट है। अक्रूरजी के रथ पर सवार होकर जब भगवान बलराम-कृष्ण मथुरा पहुँचे तो सबसे पहले प्रतीक्षा कर रहे नन्द महारजजी और गोपों से मिले।
श्रीकृष्ण से विदा लेते समय जब अक्रूर ने उन्हें अपने घर पर आने के लिये कहा तो श्रीकृष्ण ने इस प्रकार अभिप्रायः व्यक्ति किया कि वे कंस का वध करने के पश्चात ही उनके घर जायेंगे। इसके पश्चात अक्रूर ने कंस को राम-कृष्ण के आगमन का संदेश दिया।
जिस समय श्रीकृष्ण गोपों के साथ विचित्र शोभायुक्त मथुरा पुरी के दर्शन कर रहे थे उस समय वहाँ की स्त्रियों में से कुछ ने तो अपने घर के दरवाज़े पर खड़े होकर और कुछ ने अट्टालिकाओं के ऊपर से राम-कृष्ण के दर्शन किये। बहुत दिनों से इनके मन में जो व्यथा थी वह राम-कृष्ण के दर्शनों से दूर हो गई।
स्त्रियाँ अट्टालिकाओं के ऊपर से श्रीबलराम व श्रीकृष्ण पर पुष्प बरसानेलगीं और ब्रह्मणों ने दही, चावल, गन्ध और पुष्प मालाओं से उनकी पूजा की।
उसी समय श्रीकृष्ण ने कंस के धोबी को अपने नज़दीक देख उससे बढ़िया-बढ़िया वस्त्र देने के लिये प्रार्थना की। धोबी ने श्रीकृष्ण और श्रीबलराम को साधारण मनुष्य एवं कंस राजा की प्रजा मात्र समझा और श्रीकृष्ण-बलराम कि कंस के वस्त्रों के उचित अधिकारी न जान अश्लील वाक्यों द्वारा श्रीकृष्ण का तिरस्कार तो किया ही, साथ ही कपड़े देने से भी इन्कार कर दिया।
यह सुनकर श्रीकृष्ण ने क्रोधित होकर एक थप्पड़ से आत्मप्रशंसा परायण उस धोबी का सिर धड़ से अलग कर दिया। श्रीकृष्ण की इस लीला द्वारा कर्म-जड़ स्मृतियों का विचार खण्डित हुआ है।
मोटी बुद्धि वाले जड़ कर्म स्मार्ति व्यक्तियों में श्रीकृष्ण के परमतत्व सम्बन्धित ज्ञान का अभाव होता है इसीलिये वे श्रीकृष्ण के कार्यों में भी अच्छे-बुरे का विचार करते हैं। जिससे वे आत्यन्तिक मंगल से वन्चित हो जाते हैं।
श्रीकृष्ण को अपने अधीन शक्तियों क अपनी इच्छा के अनुसार व्यवहार करने का अधिकार है। जिनकी ऐसी धारणा नहीं है कि श्रीकृष्ण द्वारा उस शक्ति एवं शक्ति के अंश जीव का अपनी इच्छा द्वारा प्रयोग जीव के मंगल के लिये ही होता है, उन्हें भगवद् सम्बन्धी कुछ भी ज्ञान नहीं है।
तात्त्विक रूप से यदि विचार किया जाय तो मालूम पड़ेगा कि कंस, कंस के वस्त्र व धोबी की तमाम वस्तुओं के स्वतः सिद्ध मालिक श्रीकृष्ण हैं।
अतः तमाम वस्तुओं पर श्रीकृष्ण का ही अधिकार है और किसी का नहीं। स्थूल रूप से धोबी की हत्या करना अन्याय देखने पर भी वास्तव कें अन्याय नहीं है तथा श्रीकृष्ण के हाथों से मरने पर जो उसके सौभाग्य का उदय हुआ है वह कल्पनातीत है।
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श्रीहरि का एक विशेष गुण हैम वह है - हतारिसुगतिदायकत्त्व अर्थात् भगवान श्रीहरि असुरों को मार कर भी उन्हें सुगति प्रदान करते हैं।
श्रीकृष्ण एवं उनके भक्तों की कृपा के बिना कर्मनिष्ठ बुद्धि द्वारा ये सब तत्त्व समझ में आने वाला नहीं है।
श्रीकृष्ण से विदा लेते समय जब अक्रूर ने उन्हें अपने घर पर आने के लिये कहा तो श्रीकृष्ण ने इस प्रकार अभिप्रायः व्यक्ति किया कि वे कंस का वध करने के पश्चात ही उनके घर जायेंगे। इसके पश्चात अक्रूर ने कंस को राम-कृष्ण के आगमन का संदेश दिया।
जिस समय श्रीकृष्ण गोपों के साथ विचित्र शोभायुक्त मथुरा पुरी के दर्शन कर रहे थे उस समय वहाँ की स्त्रियों में से कुछ ने तो अपने घर के दरवाज़े पर खड़े होकर और कुछ ने अट्टालिकाओं के ऊपर से राम-कृष्ण के दर्शन किये। बहुत दिनों से इनके मन में जो व्यथा थी वह राम-कृष्ण के दर्शनों से दूर हो गई।स्त्रियाँ अट्टालिकाओं के ऊपर से श्रीबलराम व श्रीकृष्ण पर पुष्प बरसानेलगीं और ब्रह्मणों ने दही, चावल, गन्ध और पुष्प मालाओं से उनकी पूजा की।
उसी समय श्रीकृष्ण ने कंस के धोबी को अपने नज़दीक देख उससे बढ़िया-बढ़िया वस्त्र देने के लिये प्रार्थना की। धोबी ने श्रीकृष्ण और श्रीबलराम को साधारण मनुष्य एवं कंस राजा की प्रजा मात्र समझा और श्रीकृष्ण-बलराम कि कंस के वस्त्रों के उचित अधिकारी न जान अश्लील वाक्यों द्वारा श्रीकृष्ण का तिरस्कार तो किया ही, साथ ही कपड़े देने से भी इन्कार कर दिया।
यह सुनकर श्रीकृष्ण ने क्रोधित होकर एक थप्पड़ से आत्मप्रशंसा परायण उस धोबी का सिर धड़ से अलग कर दिया। श्रीकृष्ण की इस लीला द्वारा कर्म-जड़ स्मृतियों का विचार खण्डित हुआ है।मोटी बुद्धि वाले जड़ कर्म स्मार्ति व्यक्तियों में श्रीकृष्ण के परमतत्व सम्बन्धित ज्ञान का अभाव होता है इसीलिये वे श्रीकृष्ण के कार्यों में भी अच्छे-बुरे का विचार करते हैं। जिससे वे आत्यन्तिक मंगल से वन्चित हो जाते हैं।
श्रीकृष्ण को अपने अधीन शक्तियों क अपनी इच्छा के अनुसार व्यवहार करने का अधिकार है। जिनकी ऐसी धारणा नहीं है कि श्रीकृष्ण द्वारा उस शक्ति एवं शक्ति के अंश जीव का अपनी इच्छा द्वारा प्रयोग जीव के मंगल के लिये ही होता है, उन्हें भगवद् सम्बन्धी कुछ भी ज्ञान नहीं है।
तात्त्विक रूप से यदि विचार किया जाय तो मालूम पड़ेगा कि कंस, कंस के वस्त्र व धोबी की तमाम वस्तुओं के स्वतः सिद्ध मालिक श्रीकृष्ण हैं।
अतः तमाम वस्तुओं पर श्रीकृष्ण का ही अधिकार है और किसी का नहीं। स्थूल रूप से धोबी की हत्या करना अन्याय देखने पर भी वास्तव कें अन्याय नहीं है तथा श्रीकृष्ण के हाथों से मरने पर जो उसके सौभाग्य का उदय हुआ है वह कल्पनातीत है।.jpg)
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