शुक्रवार, 24 अक्टूबर 2014

पवित्र कार्तिक मास में कुछ वृज दर्शन -- 6

कमल के फूल के आकार वाले मथुरा की कर्णिका में श्रीकृष्ण के जन्मस्थान पर श्रीआदि केशवजी का श्रीमन्दिर है।

श्रीकेशव जी की पद्म-शंख-चक्र व गदाधारी चतुर्भुज मूर्ति है अर्थात् उनके नीचे की ओर वाले दाहिने हाथ में पद्म है, ऊपर उठे हुए श्रीहस्त में शंख है। इसी प्रकार ऊपर उठे बायें हाथ में चक्र है तथा नीचे की ओर बायें श्रीहस्त में गदा है।

श्रीकेशव जी के दाहिनी ओर श्रीलक्ष्मी जी हैं तथा बायीं ओर श्रीसरस्वती जी विराजित हैं। भगवान  श्रीमन् चैतन्य महाप्रभु जी ने विश्राम तीर्थ पर स्नान लीला करके श्रीकृष्ण जन्मस्थान में श्रीकेशव देवजी के दर्शन की लीला की थी।

वैसे तो भगवान के असंख्य अवतार हैं तब भी उनमें से छः मुख्य अवतार हैं, जो कि युगावतार, लीलावतार, मन्वन्तरावतार, पुरुषावतार, गुणावतार व शक्त्यावेशावतार नाम से जाने जाते हैं।

इनके अतिरिक्त भगवान का एक और कृपामय अवतार है जिसे अर्चावतार
कहा जाता है।

श्रीचैतन्य चरितामृत की मध्य लीला के 20वें परिच्छेद में श्रीचैतन्य महाप्रभु जी ने श्रीसनातन गोस्वामीजी को जो शिक्षा प्रदान कि, उस सनातन शिक्षा में श्रीमहाप्रभुजी ने जिन 24 अर्चावतारों के नामों का उल्लेख किया है, उनमें नीलाचल में श्रीजगन्नाथ, प्रयाग में श्रीमाधव, मन्दार में श्रीमधुसूदन, विष्णुकान्ची में श्रीवरदराज, मायापुर में श्री हरि, आनन्दारण्य में श्रीवासुदेव, श्रीजनार्दन व श्रीपद्मनाभ तथा मथुरा धाम में श्रीकेशव देव जी हैं।
ये उपरोक्त अर्चावतार अपने स्थानों में नित्य अधिष्ठित रहकर जगत् के जीवों का कल्याण कर रहे हैं।

जैसे की पहले कहा जा चुका है कि कमल के फूल की तरह वाले मथुरा धाम की कर्णिका में श्रीकेशव देव जी विराजित हैं। इसी कमल के पूर्व की ओर वाली कमल पंखुड़ी पर श्रीविश्रान्ति देव जी, पश्चिम की ओर वाली पंखुड़ी पर गोवर्धन निवासी श्रीहरिदेव जी, उत्तर दिशा की ओर वाली पंख़ुड़ी पर श्रीगोविन्द देव जी तथा दक्षिण दिशा की पंखुड़ी पर श्रीवराह देव जी विराजित हैं।

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