श्रीनाथ जी -
श्रील माधवेन्द्रपुरी पाद जी द्वारा सेवित गोवर्धनधारी गोपाल ही बाद में श्रीनाथ जी के नाम से प्रसिद्ध हुए।
उदयपुर से सेंटाउरस कोस उत्तर-पूर्व कोण में बनास नदी के दाहिनी ओर श्रीनाथद्वार है।
औरंगज़ेब मथुरा में जब श्रीविग्रहों को ध्वंस कर रहा था, तब उदयपुर के राणा राजसिंह ने श्रील माधवेन्द्रपुरी पाद जी द्वारा प्रकटित श्रीगोपाल जी को उदयपुर ले जाने की अनुमति ली।
राजसिंह जब बड़ी धूमधाम से विग्रहों को रथ पर सजाकर उदयपुर ले जा रहा थे तो रास्ते में 'सियार' नामक स्थान पर रथ का पहिया मिट्टी में धंस गया, कोशिश करने पर भी जब वह नहीं निकला तो उसे गोपालजी की इच्छा समझकर राजसिंह ने वहीं पर श्रीगोपालजी का सुर्मय मन्दिर बनवाया तथा वहीं पर गोपालजी को स्थापित कर दिया।
वहाँ के लोग गोपाल को 'श्रीनाथजी' कहते हैं इसलिये बाद में इस स्थान ने
भी 'नाथद्वार' के नाम से प्रसिद्धि प्राप्त की।
श्रीगौड़िय सम्प्रदाय द्वारा सेवित होने पर भी वे बल्लभ सम्प्रदाय में 'श्रीनाथजी' के नाम से प्रसिद्ध हुये।
श्रीक्षेत्र श्रिजगन्नाथ पुरी में जैसे आनन्दबाजार में श्रीजगन्नाथ जी का प्रसाद मिलता है, उसी प्रकार
नाथद्वार में भी पाया जाता है।
हाँ, श्रीजगन्नाथजी की तरह श्रीनाथजी का चावलों का भोग नहीं होता, उसके स्थान पर वहाँ बहुत-बहुत मुल्यवान मिठाइयां अर्पित की जाती हैं।
श्रील माधवेन्द्रपुरी पाद जी द्वारा सेवित गोवर्धनधारी गोपाल ही बाद में श्रीनाथ जी के नाम से प्रसिद्ध हुए।
उदयपुर से सेंटाउरस कोस उत्तर-पूर्व कोण में बनास नदी के दाहिनी ओर श्रीनाथद्वार है।
औरंगज़ेब मथुरा में जब श्रीविग्रहों को ध्वंस कर रहा था, तब उदयपुर के राणा राजसिंह ने श्रील माधवेन्द्रपुरी पाद जी द्वारा प्रकटित श्रीगोपाल जी को उदयपुर ले जाने की अनुमति ली।
राजसिंह जब बड़ी धूमधाम से विग्रहों को रथ पर सजाकर उदयपुर ले जा रहा थे तो रास्ते में 'सियार' नामक स्थान पर रथ का पहिया मिट्टी में धंस गया, कोशिश करने पर भी जब वह नहीं निकला तो उसे गोपालजी की इच्छा समझकर राजसिंह ने वहीं पर श्रीगोपालजी का सुर्मय मन्दिर बनवाया तथा वहीं पर गोपालजी को स्थापित कर दिया।
वहाँ के लोग गोपाल को 'श्रीनाथजी' कहते हैं इसलिये बाद में इस स्थान ने
भी 'नाथद्वार' के नाम से प्रसिद्धि प्राप्त की।
श्रीगौड़िय सम्प्रदाय द्वारा सेवित होने पर भी वे बल्लभ सम्प्रदाय में 'श्रीनाथजी' के नाम से प्रसिद्ध हुये।
श्रीक्षेत्र श्रिजगन्नाथ पुरी में जैसे आनन्दबाजार में श्रीजगन्नाथ जी का प्रसाद मिलता है, उसी प्रकार
नाथद्वार में भी पाया जाता है।
हाँ, श्रीजगन्नाथजी की तरह श्रीनाथजी का चावलों का भोग नहीं होता, उसके स्थान पर वहाँ बहुत-बहुत मुल्यवान मिठाइयां अर्पित की जाती हैं।
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