शुक्रवार, 17 अक्टूबर 2014

पवित्र कार्तिक मास में कुछ वृज दर्शन -- 4

बहुलावन -

यहाँ पर बहुला नाम की एक गाय थी। जिस पर एक व्याघ्र ने आक्रमण किया। व्याघ्र के आक्रमण के साथ-साथ श्रीकृष्ण ने उस व्याघ्र का निधन कर गाय की रक्षा की थी।

ऐसी भी कहावत है कि वृन्दावन में किसी कृष्ण-भक्ति ब्राह्मण की गाय थी। ये गाय चरती-चरती बहुलावन में आयी।
बहुलावन खूब घना था, उस वन के एक बाघ ने उस गाय पर हमला किया तो गाय ने उस बाघ को कहा कि वह अपने बछड़े को दूध पिलाने जा रही है, बछड़े को दुग्ध पान कराने के पश्चात वह उसकी इच्छा पुरी करेगी। 

गाय अपने बछड़े के पास जाकर बोली - तूने जितना दूध पीना है, पी ले। आज तेरा वे अन्तिम बार दुग्ध पान करना है क्योंकि मैंने व्याघ्र को वचन दिया है कि मैं शीघ्र ही वापस आकर उसकी इच्छा पूरी करूंगी।

यह सुनकर बछड़ा बोला - तुमने जैसे बाघ से प्रतिज्ञा की है, वैसे ही मैं भी प्रतिज्ञा करता हूँ कि जब तक मैं आपके प्राणों की रक्षा न कर लूँ तब तक एक भी बूँद दूध नहीं पीऊँगा।

गाय और बछड़े दोनों का इस प्रकार संकल्प देखकर ब्राह्मण उन्हें बाघ के पास ले गया, गाय बछड़ा ब्राह्मण तीनों को सामने उपस्थित देखकर बाघ ने पूछा कि मैंने तो बोला था कि मैं एक को ही खाऊँगा। तीनों को खाने की बात मैंने नहीं कही थी।

इस पर ब्राह्मण और बछड़ा एक साथ बोले कि बहुला गाय को हम से छीन लेने पर हम दोनों भी आपको आत्मोत्सर्ग करेंगे और इधर भक्त ब्राह्मण की कृष्ण-सेवा की गाय के संकट के बारे में पता लगने पर श्रीकृष्ण ने नारदजी को भेजा। 
नारदजी ने वापस आकर सारी खबर दी तो भक्त की रक्षा के लिये श्रीकृष्ण उसी समय उस स्थान पर पहुँचे। 

इसलिये बहुलाकुण्ड के किनारे स्थित मन्दिर में श्रीकृष्ण, व्याघ्र, गाय, बछड़े और ब्राह्मण की मूर्ति है।

इस बहुला गाय के नामे से ही इस वन का नाम हुआ बहुलावन।                                                                      

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