रविवार, 12 अक्टूबर 2014

पवित्र कार्तिक मास में कुछ वृज दर्शन -- 3

ध्रुव टीला -

महाराज उत्तानपाद के जयेष्ठ पुत्र ध्रुवजी पाँच वर्ष की अवस्था में  अपनी सौतेली माता के वाक्य बाणों से बिंधकर तथा अपनी माता सुनीति देवी से भगवद्-प्राप्ति का उपाय जानकर पिता से भी बड़े राज्य को प्राप्त करने कि अभिलाषा से तपस्या करने के लिये महल से निकल पड़े।

'कहाँ पद्मपलाशलोचन हरि' - भगवान के इस नाम को व्याकुलता से पुकारते-पुकारते ध्रुवजी जी तन्मय हो गये थे। 

इधर भगवान श्रीहरि की प्रेरणा से उनके प्रियजन श्रीनारद गोस्वामी पहले उत्तानपादजी की राजधानी में गये, तत्पश्चात हिंस्र जानवरों से भरे जंगल में जाकर ध्रुवजी को मिले।

ध्रुवजी से मिलकर पहले नारदजी ने कई प्रकार से उनकी परीक्षा ली, और ध्रुवजी की हरि-भजन में निष्ठा से सन्तुष्ट होकर नारदजी ने उन्हें द्वादशाक्षर मन्त्र प्रदान किया।

श्रीनारद गोस्वामी जी के उपदेशानुसार ध्रुवजी ने मधुवन में तीव्र तपस्या
करके सिद्धि प्राप्त की थी तथा चतुर्भुज नारायण जी के दर्शन करके कृत-कृतार्थ हो गये थे। इससे राज्य की अभिलाषा सम्पूर्ण रूप से उनके हृदय से अन्तर्हित हो गयी।

ध्रुव जी जिस घाट पर स्नान करते थे, वह चौबीस घाटों में से ही एक घाट है, जो कि ध्रुव घाट के नाम से प्रसिद्ध है।

इस ध्रुवतीर्थ में जो लोग जप, होम, तपस्या, दान, अर्चन करते हैं, उन्हें अन्यान्य सभी तीर्थों की अपेक्षा सौ गुन अधिक फल मिलता है।

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