आदि वराह (कृष्ण वराह) , श्वेत वराह -
चौबे लोगों के पाड़े के मणिकचक नामक मुहल्ले में छोटे से मन्दिर के अन्दर आदि वराहदेव विराजित हैं।
इन चतुर्भुज वराह के मुख वाले श्रीविग्रह में श्रीवराह देव दाँतों पर पृथ्वी को धारण किये हुये हैं, और चरणों से हिरण्याक्ष दैत्य को दलन कर रहे हैं।
इस मन्दिर से थोड़ी दूर पर ही एक और छोटे से मन्दिर में श्वेत पत्थर से बनी श्रीवराह मूर्ति विराजित है।
श्रीवराह पुराण में आदि वराह और श्वेत वराह की मूर्ति के सम्बन्ध में उल्लेख है कि……
यहाँ दो प्रकार के वराह विग्रह देखने को मिलते हैं। श्रीआदि वराह के उपासक थे कपिल । देवराज इन्द्र को इन्हीं ब्राह्मण-ॠषि से वराह भगवान का ये विग्रह मिला था । बाद में रावण ये विग्रह लंका ले गया था।
किन्तु श्रीरामचन्द्रजी उस निर्विशेषवादी रावण का वध कर उक्त श्रीमूर्ति को अयोध्या ले आये, लवण दैत्य का वध करने के पश्चात श्रीशत्रुघनजी ने वही विग्रह मथुरा में प्रतिष्ठित किये।
चौबे लोगों के पाड़े के मणिकचक नामक मुहल्ले में छोटे से मन्दिर के अन्दर आदि वराहदेव विराजित हैं।
इन चतुर्भुज वराह के मुख वाले श्रीविग्रह में श्रीवराह देव दाँतों पर पृथ्वी को धारण किये हुये हैं, और चरणों से हिरण्याक्ष दैत्य को दलन कर रहे हैं।
इस मन्दिर से थोड़ी दूर पर ही एक और छोटे से मन्दिर में श्वेत पत्थर से बनी श्रीवराह मूर्ति विराजित है।
श्रीवराह पुराण में आदि वराह और श्वेत वराह की मूर्ति के सम्बन्ध में उल्लेख है कि……
यहाँ दो प्रकार के वराह विग्रह देखने को मिलते हैं। श्रीआदि वराह के उपासक थे कपिल । देवराज इन्द्र को इन्हीं ब्राह्मण-ॠषि से वराह भगवान का ये विग्रह मिला था । बाद में रावण ये विग्रह लंका ले गया था।
किन्तु श्रीरामचन्द्रजी उस निर्विशेषवादी रावण का वध कर उक्त श्रीमूर्ति को अयोध्या ले आये, लवण दैत्य का वध करने के पश्चात श्रीशत्रुघनजी ने वही विग्रह मथुरा में प्रतिष्ठित किये।

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