सोमवार, 8 सितंबर 2014

श्रीअनन्त देव

प्रातः स्मरणीय श्रील भक्ति बल्लभ तीर्थ गोस्वामी महाराज जी अपनी रचना श्री दशावतार के माध्यम से बताते हैं -

सभी कारणों के कारण भगवान श्रीकृष्ण के प्रथम विस्तार हैं श्रीबलदेव। श्रीबलदेव ही मूल संकर्षण हैं जो कि वृज धाम में एक ग्वाल बालक के रूप से तथा द्वारिका में क्षत्रिय के रूप में रहते हैं।
ग्वाल-बाल बलदेव (मूल संकर्षण) के प्रथम विस्तार है द्वारिका का चतुर्व्यूह । इस चतुर्व्यूह के संकर्षण, मूल-संकर्षण के अंशावतार हैं।

भगवान नारायण के वैकुण्ठ में भी एक चतुर्व्यूह है जिसे द्वितीय चतुर्व्यूह कहते हैं। इस चतुर्व्यूह के संकर्षण ही महा-संकर्षण हैं जो कि अंशावतार हैं, द्वरिका के प्रथम चतुर्व्यूह के संकर्षण के।
कारणोदक्षायी महा-विष्णु जी, महा-संकर्षण के अंशावतार हैं।  ये ही सभी ब्रह्माण्डों के स्रोत हैं।

कारणोदक्षायी महा-विष्णु जी के विस्तार हैं गर्भोदक्षायी विष्णु जी जो की सभी ब्रह्माण्डों में प्रवेश कर उनमें जीवन संचारित करते हैं ।

गर्भोदक्षायी विष्णु जी के विस्तार हैं, श्रीक्षीरोदक्षायी विष्णु। ये ही परमात्मा रूप से सभी जीवों में विराजमान हैं।
सभी देवी-देवता कष्ट के समय इन्हीं श्रीक्षीरोदक्षायी विष्णु से प्रार्थना करते हैं, दुष्टों के संहार के लिये।

श्रीक्षीरोदक्षायी विष्णु के अंशावतार हैं, भगवान अनन्त देव जी।

आज श्रीअनन्त चतुर्दशी है।

भगवान अनन्त देव जी की जय !!!!

श्रीअनन्त चतुर्दशी की जय !!!!

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