श्रील सच्चिदानन्द भक्ति विनोद ठाकुर जी ने नवद्वीपधाम-महात्मय नामक ग्रन्थ में लिखा है --
द्वापर युग में नन्द-नन्दन श्रीकृष्ण के बछड़े और ग्वालों के साथ भ्रमण करते समय सृष्टिकर्ता ब्रह्मा जी ने श्रीकृष्ण के वास्त्विक रूप को न जानते हुये भी उनकी परीक्षा लेने के लिये बछड़ों व गोप बालकों को हरण कर लिया तथा एक वर्ष सुमेरु पर्वत की गुफा में रखा।
किन्तु वर्ष के अन्त में ब्रह्मा जी व्रज में आकर श्रीकृष्ण को गोपबालक और गोवत्सों के साथ उसी प्रकार भ्रमण करते देखा तो वे आश्चर्यान्वित हो गये। बाद में अपनी भूल को जानकर वे अनुतप्त होकर श्रीकृष्ण के चरणों में प्रपन्न हो क्षमा याचना करने लगे।
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क्षमा की भिक्षा चाहने पर श्रीकृष्ण ने कृपापूर्वक ब्रह्माजी के समक्ष अपने स्वरूप का प्रदर्शन किया।
जिस द्वापर युग में स्वयं भगवान नन्दनन्दन श्रीकृष्ण का आविर्भाव होता है, उसी द्वापर युग के साथ लगे कलियुग के प्रारम्भ में नन्दनन्दन श्रीकृष्ण राधारानी के भाव और कान्ति को लेकर औदार्यलीलामय विग्रह श्रीगौरांग रूप से अवतीर्ण होते हैं।
नवद्वीप धाम के अन्तर्गत अन्तर्द्वीप में बैठकर ब्रह्मा जी इस चिन्ता में चिन्तामग्न थे कि कहीं गौरावतार में भी वे गल्ती से भगवत् चरणों में दुबारा अपराध न कर बैठें।

श्रीकृष्ण उनके हृदय का भाव जान गये तथा उनके भावानुसार श्रीकृष्ण ने उनको गौरांग रूप से दर्शन देते हुये कहा - 'गौरांगावतार के समय तुम यवन कुल में आविर्भूत होकर हरिदास ठाकुर के रूप से नाम-माहात्म्य का प्रचार करोगे एवं जीवों का कल्याण करोगे।'
श्रील हरिदास ठाकुर जी की जय!!!
आपके निर्याण महा-महोत्सव की जय !!!!
द्वापर युग में नन्द-नन्दन श्रीकृष्ण के बछड़े और ग्वालों के साथ भ्रमण करते समय सृष्टिकर्ता ब्रह्मा जी ने श्रीकृष्ण के वास्त्विक रूप को न जानते हुये भी उनकी परीक्षा लेने के लिये बछड़ों व गोप बालकों को हरण कर लिया तथा एक वर्ष सुमेरु पर्वत की गुफा में रखा।
किन्तु वर्ष के अन्त में ब्रह्मा जी व्रज में आकर श्रीकृष्ण को गोपबालक और गोवत्सों के साथ उसी प्रकार भ्रमण करते देखा तो वे आश्चर्यान्वित हो गये। बाद में अपनी भूल को जानकर वे अनुतप्त होकर श्रीकृष्ण के चरणों में प्रपन्न हो क्षमा याचना करने लगे। .jpg)
क्षमा की भिक्षा चाहने पर श्रीकृष्ण ने कृपापूर्वक ब्रह्माजी के समक्ष अपने स्वरूप का प्रदर्शन किया।
जिस द्वापर युग में स्वयं भगवान नन्दनन्दन श्रीकृष्ण का आविर्भाव होता है, उसी द्वापर युग के साथ लगे कलियुग के प्रारम्भ में नन्दनन्दन श्रीकृष्ण राधारानी के भाव और कान्ति को लेकर औदार्यलीलामय विग्रह श्रीगौरांग रूप से अवतीर्ण होते हैं।
नवद्वीप धाम के अन्तर्गत अन्तर्द्वीप में बैठकर ब्रह्मा जी इस चिन्ता में चिन्तामग्न थे कि कहीं गौरावतार में भी वे गल्ती से भगवत् चरणों में दुबारा अपराध न कर बैठें।

श्रीकृष्ण उनके हृदय का भाव जान गये तथा उनके भावानुसार श्रीकृष्ण ने उनको गौरांग रूप से दर्शन देते हुये कहा - 'गौरांगावतार के समय तुम यवन कुल में आविर्भूत होकर हरिदास ठाकुर के रूप से नाम-माहात्म्य का प्रचार करोगे एवं जीवों का कल्याण करोगे।'श्रील हरिदास ठाकुर जी की जय!!!
आपके निर्याण महा-महोत्सव की जय !!!!


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