शनिवार, 6 सितंबर 2014

क्या अभी भी मेरा शिष्य अशुद्ध है?

भगवान नारायण माता अदिति व ॠषि कश्यप के समक्ष चतुर्भुज रूप में प्रकट हो गये। और उनके देखते ही देखते भगवान, वामन (बौना, छोटा) के रूप में परिवर्तित हो गये।

भगवान वामन ने अपनी विमोहन लीला से महाराज बलि से सब कुछ जीत लिया। बलि महाराज जी भगवान के शरणागत हो गये। 


वैसे भी भगवान के शरणागत होने से किसी को कोई नुकसान कभी नहीं होता। अपने अज्ञान की वजह से लोग भगवान से तुच्छ वस्तुओं की माँग करते रहते हैं। 

बिना किसी दुनियावी इच्छा से अगर व्यक्ति भगवान की शरण ग्रहण कर ले तो उसे पूर्ण- आनन्द के स्रोत भगवान की प्राप्ति हो जाती है।

श्रीबलि महाराज जी ने भक्ति के नौ अंगों में से एक 'आत्म-निवेदन' के
माध्यम से भगवान को प्राप्त कर लिया।

अपने पौत्र की भगवद् प्राप्ति को देखकर श्रीप्रह्लाद महाराज जी अत्यन्त प्रसन्न हुये थे। उन्होंने अपने पुत्र विरोचन को भक्त बनाने की कोशिश की थी, परन्तु विरोचन भगवान का भजन नहीं कर पाये थे।
बलि महाराज के आत्मनिवेदन से प्रसन्न होकर, भगवान ने उन्हें सुतल लोक प्रदान किया था जो ऐश्वर्य व आनन्द में वैकुण्ठ के ही समान था। भगवान ने सुदर्शन चक्र को आज्ञा दी थी, कि वह हमेशा सुतल लोक की रक्षा के लिये सज्ज रहेगा।

बाद में भगवान वामन देव जी ने बलि महाराज जी के गुरु श्रीशुक्राचार्य से कहा -- आपके शिष्य बलि महाराज को बहुत कष्ट सहने पड़े हैं। कृपया कोई यज्ञ करें जिससे उनका कल्याण हो सके।

श्रीशुक्राचार्य जी ने कहा -- मेरे शिष्य ने आपके दर्शन किय हैं। आपका नाम
लिया है, आपका गुणगान किया है। अति दुर्लभ आपके श्रीचरण उसके सिर पर आपने रखे, क्या अभी भी मेरा शिष्य अशुद्ध है, जो मुझे उसके लिये यज्ञ करना होगा?

श्रीमद् भागवतम् (8/23/16) - हो सकता है कि मन्त्र उच्चारण में, नियमों के पालन में, उपयुक्त समय की गणना में, स्थान में, व्यक्ति में, वस्तुओं में या अन्य किसी में कुछ कमी रह जाये किन्तु जहाँ पर भगवान के दिव्य नाम का उच्चारण किया जाता है, वहाँ सब कुछ पूर्ण हो जाता है, किसी भी प्रकार की कमी नहीं रहती।

भगवान वामन देव की जय !!!

आपके प्रकट् दिवस की जय !!!

श्रीवामन द्वादशी तिथि पूजा महा-महोत्सव की जय !!!!

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