भगवान श्रीकृष्ण की लीला में जो श्रीसुबल सखा हैं, वे ही भगवान श्रीचैतन्य महाप्रभु की लीला में श्रील गौरीदास पण्डित बन कर आये। आप वृन्दावन लीला के द्वादश गोपालों में से एक हैं।

श्रीकंसारी मिश्र आपके पिताजी व श्रीमती कमला देवी आपकी माताजी हैं।
श्रीगौरीदास पण्डित जी के शिष्य थे श्रीहृदय चैतन्य जी।

एक बार श्रीचैतन्य महाप्रभु जी गंगा को पार करके आपके निवास स्थान 'अम्बिका' पहुँचे। वहाँ पहुँचने पर श्रीमहाप्रभु जी ने श्रीगौरीदास पण्डित जी से कहा - मैं शान्तिपुर गया था और वहीं से गंगाजी को पार करने के लिये मैं हरिनदी गाँव से नाव पर चढ़ा, परन्तु जब मैं नदी पार करके उतरा तो मैंने नाव का चप्पू निकाल लिया, जिसे मैं तुम्हें देना चाहता हूँ। आप ये चप्पू लो और जैसे मैंने इस नदी को पार किया, उसी प्रकार आप भी जीवों को इस विशाल भव-नदी से पार करवाओ।

इतना कहकर श्रीचैतन्य महाप्रभु जी ने श्रील गौरीदास पण्डित जी को आलिंगन कर लिया।

आज भी जो लोग अम्बिका जाते हैं, उन्हें श्रीमहाप्रभुजी के हाथों से श्रीलगौरीदास जी को दी गयी श्रीमद् भगवद् गीता व नाव का चप्पू के दर्शन करने का सौभाग्य मिलता है।
श्रील गौरीदास पण्डित जी की जय !!!!
आपके तिरोभाव तिथि पूजा महा-महोत्सव की जय !!!!!!!

श्रीकंसारी मिश्र आपके पिताजी व श्रीमती कमला देवी आपकी माताजी हैं।
श्रीगौरीदास पण्डित जी के शिष्य थे श्रीहृदय चैतन्य जी।

एक बार श्रीचैतन्य महाप्रभु जी गंगा को पार करके आपके निवास स्थान 'अम्बिका' पहुँचे। वहाँ पहुँचने पर श्रीमहाप्रभु जी ने श्रीगौरीदास पण्डित जी से कहा - मैं शान्तिपुर गया था और वहीं से गंगाजी को पार करने के लिये मैं हरिनदी गाँव से नाव पर चढ़ा, परन्तु जब मैं नदी पार करके उतरा तो मैंने नाव का चप्पू निकाल लिया, जिसे मैं तुम्हें देना चाहता हूँ। आप ये चप्पू लो और जैसे मैंने इस नदी को पार किया, उसी प्रकार आप भी जीवों को इस विशाल भव-नदी से पार करवाओ।

इतना कहकर श्रीचैतन्य महाप्रभु जी ने श्रील गौरीदास पण्डित जी को आलिंगन कर लिया।

आज भी जो लोग अम्बिका जाते हैं, उन्हें श्रीमहाप्रभुजी के हाथों से श्रीलगौरीदास जी को दी गयी श्रीमद् भगवद् गीता व नाव का चप्पू के दर्शन करने का सौभाग्य मिलता है।
श्रील गौरीदास पण्डित जी की जय !!!!
आपके तिरोभाव तिथि पूजा महा-महोत्सव की जय !!!!!!!
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