श्रीमती राधा जी के अनुगत सखियों में प्रधान हैं, श्रीमती ललिता सखी। श्रीमती ललिता सखी के अनुगत मंजरियों में प्रधान हैं - श्रीमती रूप मंजरी ।
आप ही श्रीचैतन्य महाप्रभु जी की लीला में श्रीरूप गोस्वामी बन कर आयीं। श्रीगौर लीला में षट् गोस्वामियों में प्रधान हैं - श्रील रूप गोस्वामी।
आपके पिताजी का नाम था श्री कुमार देव जी।
आपके वंश के बारे में --
भरद्वाज गोत्र के जगद्-गुरु 'सर्वज्ञ' नामक एक महात्मा 12वीं शक शताब्दी में कर्नाटक में ब्राह्मण राजवंश में पैदा हुये थे। उनके रूपेश्वर और हरिहर नामक दो पुत्र हुए। रूपेश्वर जी के पुत्र पद्मनाभ जी ने गंगा के किनारे स्थित नैहाटी नामक ग्राम में निवास किया था। उनके पाँच पुत्र हुए - उन में सबसे छोटे मुकुन्द के पुत्र थे - महासदाचारी कुमार देव जो श्रीसनातन, श्रीरूप और श्रीअनुपम के पिता थे।
श्रीचैतन्य महाप्रभु जी ने श्रील रूप गोस्वामी जी के माध्यम से भक्ति रस के लक्षण वर्णन करते हुये, श्रीकृष्ण-भक्ति की सुदुर्लभता के बारे में बताया।
आपने बताया -
अनन्त जीव दो प्रकार के होते हैं -- स्थावर और जंगम।
जंगम प्राणी उन्हें कहते हैं जो चल-फिर सकते हैं। ये तीन प्रकार के होते हैं -- खेचर (आकाश में उड़ने वाले), जलचर (पानी में रहने वाले), स्थलचर (भूमि पर विचरण करने वाले)।
स्थलचरों में सबसे कम संख्या होती है मनुष्यों की।
मनुष्यों में भी जो वेद को नहीं मानते ऐसे (जैसे -- म्लेच्छ, पिलुन्द, बौद्ध व शबरादि) लोगों को छोड़ देने से मनुष्यों की संख्या और कम हो जाती है।
फिर वेद मानने वालों में भी दो प्रकार देखे जाते हैं --
धर्माचारी और अधर्माचारी।
धर्माचारियों में भी ज्यादातर संख्या होती है कर्मनिष्ठों की। करोड़ों कर्मनिष्ठों में एक ज्ञानी होता है तथा करोड़ ज्ञानियों में से कोई एक मुक्त होता है। करोड़ों मुक्तों में से दुर्लभ कोई एक कृष्ण भक्त होता है।
भक्ति को उत्पन्न करवाने में उपयोगी सुकृति रूपी भाग्योदय ही जीवों को सुदुर्लभ कृष्ण भक्ति प्राप्त करवाती है।
इसके अलावा गुरु और श्रीकृष्ण की कृपा से ही भक्ति की प्राप्ति होती है।
शुद्ध भक्ति का आश्रय ब्रह्माण्ड अथवा विरजा अथवा ब्रह्मलोक नहीं है। यहाँ तक की वैकुण्ठ में भी भक्ति-लता का सम्पूर्ण आश्रय स्थल नहीं है। वृन्दावन में श्रीकृष्ण के चरण ही इस शुद्ध भक्ति का पूर्ण आश्रय स्थल है।
श्रील कृष्णदास कविराज गोस्वामी जी ने श्रीचैतन्य चरितामृत में इस विषय को बहुत सुन्दर ढंग से दिया है।
श्रील रूप गोस्वामी जी की जय !!!!
आपके तिरोभाव तिथि पूजा महा-महोत्सव की जय !!!!!
आप ही श्रीचैतन्य महाप्रभु जी की लीला में श्रीरूप गोस्वामी बन कर आयीं। श्रीगौर लीला में षट् गोस्वामियों में प्रधान हैं - श्रील रूप गोस्वामी।
आपके पिताजी का नाम था श्री कुमार देव जी।
आपके वंश के बारे में --
भरद्वाज गोत्र के जगद्-गुरु 'सर्वज्ञ' नामक एक महात्मा 12वीं शक शताब्दी में कर्नाटक में ब्राह्मण राजवंश में पैदा हुये थे। उनके रूपेश्वर और हरिहर नामक दो पुत्र हुए। रूपेश्वर जी के पुत्र पद्मनाभ जी ने गंगा के किनारे स्थित नैहाटी नामक ग्राम में निवास किया था। उनके पाँच पुत्र हुए - उन में सबसे छोटे मुकुन्द के पुत्र थे - महासदाचारी कुमार देव जो श्रीसनातन, श्रीरूप और श्रीअनुपम के पिता थे।

आपने बताया -
अनन्त जीव दो प्रकार के होते हैं -- स्थावर और जंगम।
जंगम प्राणी उन्हें कहते हैं जो चल-फिर सकते हैं। ये तीन प्रकार के होते हैं -- खेचर (आकाश में उड़ने वाले), जलचर (पानी में रहने वाले), स्थलचर (भूमि पर विचरण करने वाले)।
स्थलचरों में सबसे कम संख्या होती है मनुष्यों की।

फिर वेद मानने वालों में भी दो प्रकार देखे जाते हैं --
धर्माचारी और अधर्माचारी।
धर्माचारियों में भी ज्यादातर संख्या होती है कर्मनिष्ठों की। करोड़ों कर्मनिष्ठों में एक ज्ञानी होता है तथा करोड़ ज्ञानियों में से कोई एक मुक्त होता है। करोड़ों मुक्तों में से दुर्लभ कोई एक कृष्ण भक्त होता है।
भक्ति को उत्पन्न करवाने में उपयोगी सुकृति रूपी भाग्योदय ही जीवों को सुदुर्लभ कृष्ण भक्ति प्राप्त करवाती है।
इसके अलावा गुरु और श्रीकृष्ण की कृपा से ही भक्ति की प्राप्ति होती है।


श्रील रूप गोस्वामी जी की जय !!!!
आपके तिरोभाव तिथि पूजा महा-महोत्सव की जय !!!!!
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