हमारे गौड़ीय वैष्णव आचार्य लोग तिलक को श्रीहरि मन्दिर कहते हैं। ये शरीर के बारह 12 स्थानों पर लगाया जाता है, जिनमें की बकायदा मन्त्रों के द्वारा भगवान को विराजित किया जाता है। अर्थात तिलक का अर्थ है श्री हरि मन्दिर।
श्रीपद्मपुराण के अनुसार, 'बिना ऊर्ध्वपुण्ड्र (तिलक) वाले मनुष्य शरीर का दर्शन नहीं करना चाहिये, क्योंकि ये श्मशान के समान होता है।'
जो शीशे में अथवा जल में अपना प्रतिबिम्ब देखकर यत्न के साथ ऊर्ध्वपुण्ड्र निर्माण करते हैं, वे परम गति लाभ करते हैं।
श्रीपद्मपुराण में कहते हैं कि नासिका से सिर के बालों तक विस्तृत, अत्तिव सुन्दर और बीच में छेद से युक्त - ऊर्ध्वपुण्ड्र को ही हरिमन्दिर समझना चाहिए। ऊर्ध्वपुण्ड्र (तिलक) के बायीं ओर ब्रह्मा, दक्षिण की ओर सदाशिव और बीच में हरि अधिष्ठित रहते हैं ।
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Ati uttam...
जवाब देंहटाएंVery nice explanation...!