इस संसार में इस समय लगभग 600 करोड़ से ज्यादा लोग होंगे। किन्तु आज से 150 वर्ष उपरान्त शायद ही कोई यहाँ पर होगा लेकिन आत्मायें सबकी रहेंगी क्योंकि यह नित्य है। आत्मा शरीर नहीं है। शरीर जड़ है, आत्मा चेतन है। स्वतन्त्रता सदा चेतन की होती है जड़ की नहीं । मान लो एक माइक है, वो माइक कभी नहीं कह सकता कि 'मैं माइक हूँ' । हम अर्थात् मनुष्य कहते हैं, ये माइक है। हम सब अन्ततः यह शरीर छोड़ देंगे, फिर भी रहेंगे।
जैसे बचपन, यौवन, वृद्धावस्था होती है, वैसे ही मृत्यु भी होती है। धीर व्यक्ति इससे घबराता नहीं है। सौभाग्य से ही यह ज्ञान प्रकाश होता है कि आत्मा नित्य है।

जब श्रीबजरंग बली भगवान श्रीराम का संवाद लेकर माता सीता के पास गये थे, लंका में, तब विभीषण ने रावण से कहा था --'राम जी भगवान हैं, सीता जी उनकी शक्ति हैं। आप उनको कष्ट दे रहे हैं, यह अच्छा नहीं है।' रावण को बहुत गुस्सा आया। उन्होंने विभीषण को लात मार दी और उसे लंका से बाहर कर दिया। विभीषण को क्रोध तो नहीं आया पर उन्होंने निश्चय किया की जहाँ पर भगवान का सम्मान नहीं, वहाँ पर नहीं रहना। उनके मन में संशय उठा कि लोग कहेंगे -- भाई ने क्रोध किया तो दुश्मन से जा मिले।
विभीषन ने कईयों से मन्त्रणा की । वे शिव जी के पास भी गये। शिव जी ने
कहा -- 'श्रीराम जी तो परब्रह्म हैं, निःसंकोच होकर तुम श्रीराम जी की शरण में जाओ, वे तुम्हारा हर प्रकार से मंगल करेंगे। जहाँ तक रही बात लोगों के दोषारोपण की तो सुनो तुम्हारे अन्दर से भावना नहीं आनी चाहिए की लंका में विजय प्राप्त करने के बाद राम जी तुम्हें लंका का राजा बनायेंगे। चुंकि तुम्हारा प्रेम सकाम नहीं अतः निश्चिंत हो कर जाओ।'

विभीषण जी जब वहाँ पहुँचे तब अंगद इत्यादि उन्हें मारने को अमादा हो गये। हनुमान जी ने उन्हें रोका व कहा की जब मैं लंका में गया था तब अशोक वाटिका में मैंने माता सीता के कष्ट को देखकर सारी वाटिका को तहस-नहस कर दिया था। रावण के कई राक्षसों को मैंने मारा था। इन्द्रजीत ने मुझ पर ब्रह्मास्त्र चलाया था। ब्रह्मा जी के सम्मान के लिए मैंने बंधना स्वीकार कर लिया था व एक छोटा सा बंदर हो गया। इन्द्रजीत मुझे बांध कर रावण के पास ले गया था। मैंने रावण को समझाया की आपको बाली ने परास्त किया था। राम जी ने उसको मार दिया, आप सीता जी को छोड़ दीजिए,
अन्यथा मारे जाओगे। रावण को गुस्सा आया, और उसने आदेश दिया था कि इस बन्दर को मार दिया जाये। उसी समय इन विभीषण ने मेरे लिए बीच में ही बोला था की इनको मारना नहीं चाहिए, ये तो दूत हैं। यह और बात है की रावण ने मेरी पूँछ पर आग लगा दी, अतः मुझे लंका जलानी पड़ी।
हनुमान जी की बात सुनकर वानर सेना वा भालू सेना के भाव विभीषण के प्रति बदल गये। तभी वहाँ पर भगवान श्रीराम आ गये।
सबने आपको सारी बात बताई।
भगवान श्रीराम मुस्कुरा दिये व कहने लगे --'विभीषण की बात छोड़ो, अगर रावण भी आ जाये और एक बार कह दे कि मैं तुम्हारे शरणागत हूँ तो मैं उसे भी क्षमा कर दूँगा। कोई भी मुझ से एक बार कह दे की हे राम ! मैं
तुम्हारा हूँ तो मैं उसे शरण प्रदान कर देता हूँ। '
यह है भगवान का वात्सल्य प्रेम।
जय श्री राम !!
श्री राम नवमी महोत्सव की जय !!!!
जैसे बचपन, यौवन, वृद्धावस्था होती है, वैसे ही मृत्यु भी होती है। धीर व्यक्ति इससे घबराता नहीं है। सौभाग्य से ही यह ज्ञान प्रकाश होता है कि आत्मा नित्य है।

जब श्रीबजरंग बली भगवान श्रीराम का संवाद लेकर माता सीता के पास गये थे, लंका में, तब विभीषण ने रावण से कहा था --'राम जी भगवान हैं, सीता जी उनकी शक्ति हैं। आप उनको कष्ट दे रहे हैं, यह अच्छा नहीं है।' रावण को बहुत गुस्सा आया। उन्होंने विभीषण को लात मार दी और उसे लंका से बाहर कर दिया। विभीषण को क्रोध तो नहीं आया पर उन्होंने निश्चय किया की जहाँ पर भगवान का सम्मान नहीं, वहाँ पर नहीं रहना। उनके मन में संशय उठा कि लोग कहेंगे -- भाई ने क्रोध किया तो दुश्मन से जा मिले।
विभीषन ने कईयों से मन्त्रणा की । वे शिव जी के पास भी गये। शिव जी ने
कहा -- 'श्रीराम जी तो परब्रह्म हैं, निःसंकोच होकर तुम श्रीराम जी की शरण में जाओ, वे तुम्हारा हर प्रकार से मंगल करेंगे। जहाँ तक रही बात लोगों के दोषारोपण की तो सुनो तुम्हारे अन्दर से भावना नहीं आनी चाहिए की लंका में विजय प्राप्त करने के बाद राम जी तुम्हें लंका का राजा बनायेंगे। चुंकि तुम्हारा प्रेम सकाम नहीं अतः निश्चिंत हो कर जाओ।'

विभीषण जी जब वहाँ पहुँचे तब अंगद इत्यादि उन्हें मारने को अमादा हो गये। हनुमान जी ने उन्हें रोका व कहा की जब मैं लंका में गया था तब अशोक वाटिका में मैंने माता सीता के कष्ट को देखकर सारी वाटिका को तहस-नहस कर दिया था। रावण के कई राक्षसों को मैंने मारा था। इन्द्रजीत ने मुझ पर ब्रह्मास्त्र चलाया था। ब्रह्मा जी के सम्मान के लिए मैंने बंधना स्वीकार कर लिया था व एक छोटा सा बंदर हो गया। इन्द्रजीत मुझे बांध कर रावण के पास ले गया था। मैंने रावण को समझाया की आपको बाली ने परास्त किया था। राम जी ने उसको मार दिया, आप सीता जी को छोड़ दीजिए, अन्यथा मारे जाओगे। रावण को गुस्सा आया, और उसने आदेश दिया था कि इस बन्दर को मार दिया जाये। उसी समय इन विभीषण ने मेरे लिए बीच में ही बोला था की इनको मारना नहीं चाहिए, ये तो दूत हैं। यह और बात है की रावण ने मेरी पूँछ पर आग लगा दी, अतः मुझे लंका जलानी पड़ी।
हनुमान जी की बात सुनकर वानर सेना वा भालू सेना के भाव विभीषण के प्रति बदल गये। तभी वहाँ पर भगवान श्रीराम आ गये।
सबने आपको सारी बात बताई।
भगवान श्रीराम मुस्कुरा दिये व कहने लगे --'विभीषण की बात छोड़ो, अगर रावण भी आ जाये और एक बार कह दे कि मैं तुम्हारे शरणागत हूँ तो मैं उसे भी क्षमा कर दूँगा। कोई भी मुझ से एक बार कह दे की हे राम ! मैं
तुम्हारा हूँ तो मैं उसे शरण प्रदान कर देता हूँ। '
यह है भगवान का वात्सल्य प्रेम।
जय श्री राम !!
श्री राम नवमी महोत्सव की जय !!!!


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