ॐ विष्णुपाद 108 श्रीश्रीमद् भक्ति बल्लभ तीर्थ गोस्वामी महाराज जी एक बार दिल्ली के हस्पताल (Max Hospital) में अस्वस्थता की लीला कर रहे थे तो वहाँ ऐसा माहौल बन गया था कि दिन-रात मठ के त्यागी व गृहस्थ-भक्त आते-जाते रहते थे। हास्पीटल के लोग भी हैरान थे कि ये कौन स्वामी जी हैं, जिनके शिष्य इनको इतना प्यार व इन पर इतनी श्रद्धा करते हैं कि सारा दिन विश्राम कक्ष (waiting hall) भरा ही रहता है तथा लगभग सभी भक्त हास्पीटल के I.C.C.U Room को बाहर से ही जूते उतारकर, हाथ जोड़ते हुए तथा फर्श पर लम्बा लेटकर प्रणाम करते हैं। शायद इसी कारण से हास्पीटल के लगभग सभी डाक्टर व स्टाफ के लोग आपसे बड़ा सम्मानपूर्वक व्यवहार करते थे।
आपके पलंग पर श्रीचरणों की ओर घुटने के बल बैठकर एक दिन हास्पीटल स्टाफ के एक व्यक्ति ने आप से पूछा --'स्वामी जी ! भगवान कैसे प्रसन्न होते हैं? क्या गरीबों की सेवा करने से?'
आपने कहा --'भगवान तो गरीब या अमीर नहीं देखते हैं, उनकी नज़रों में तो सब एक समान हैं।'
जिज्ञासु - 'तो क्या दान देने से भगवान प्रसन्न होते हैं?'

आप -- 'हम भला क्या दान देंगे? दान तो हम उसी वस्तु का दे सकते हैं जो कि हमारी हो। ये सभी कुछ तो भगवान का है। भगवान की वस्तु को दान देने का हमारा क्या हक है? हमारे गुरुवर्ग, परमपूज्यपाद श्रीश्रीमद् भक्ति रक्षक श्रीधर महाराज जी हमें समझाया करते थे कि भोग का त्याग करो और त्याग का भी त्याग करो।'
जिज्ञासु -- 'तो स्वामी जी ! भगवान प्रसन्न कैसे होते हैं?'
आप -- 'भगवान श्रीहरि प्रसन्न होते हैं -- सेवा से।'
जिज्ञासु -- 'स्वामी जी ! किसकी सेवा करने से भगवान प्रसन्न होते हैं?'

आपने कहा -- 'हमारे श्रीमद् भागवत आदि ग्रन्थों से पता चलता है कि दुनियाँ में जितने भी प्राणी, भूत-प्रेत, यक्ष-राक्षस व देवी-देवता हैं, इन सभी के मूल कारण भगवान श्रीकृष्ण हैं। इसलिए श्रीकृष्ण की सेवा करनी चाहिए। क्योंकि भगवान की सेवा करने
से सभी की सेवा हो जाती है। ठीक उसी प्रकार, जैसे किसी पेड़ की जड़ में पानी डालने से पेड़ के तने, डाली, फूल, फल व पत्ते -- सभी में, उनकी ज़रूरत के अनुसार पानी पहुँच जाता है व उनकी तृप्ति हो जाती है और वे फूलने-फलने लगते हैं।'
जिज्ञासु -- ' क्या करने से भगवान सबसे ज्यादा प्रसन्न होते हैं?'
श्रील तीर्थ महाराज -- 'भक्त व भगवान की महिमा सुनने से व हरिनाम संकीर्तन करने से भगवान सबसे ज्यादा प्रसन्न होते हैं।'


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SREE CHAITNYA GAUDIYA MATH
mai aap sabhi ko parnam karta hua kirpa kar ka mar ko aashirvaad dijia aur aapna bhakt banaea
hare krishna