शनिवार, 4 जनवरी 2014

और आप पर श्रील रूप गोस्वामी जी की कृपा हो गई…

श्रीकृष्ण लीला में जो विलास मंजरी हैं, वे ही श्री चैतन्य महाप्रभु जी की लीला में श्री जीव गोस्वामी हैं।
श्रील भक्ति सिद्धान्त सरस्वती गोस्वामी प्रभुपाद जी, श्रीजीव गोस्वामी जी के सम्बन्ध में लिखते हैं कि श्रीरूप गोस्वामी तथा श्रीसनातन गोस्वामी जी के अप्रकट होने के बाद श्रीजीव गोस्वामी जी को सोत्कल गौड़ मथुरा मण्डल के गौड़ीय वैष्णव सम्प्रदाय के सर्वश्रेष्ठ आचार्य पद पर नियुक्त किया गया। आचार्य पद पर रहते हुए आप सभी को श्रीगौरसुन्दर द्वारा प्रचारित शुद्ध-भक्ति की बात समझाते व सभी से हरि-भजन कराते। बीच-बीच में आप श्रीब्रजधाम की परिक्रमा करते व मथुरा में श्रीविट्ठल देव जी के दर्शन करने को जाते। श्रील कृष्ण दास कविराज गोस्वामी जी ने आपके प्रकटकाल में ही श्रीचैतन्य चरितामृत की रचना की थी। 'श्रीचैतन्य चरितामृत' की रचना के बाद ही श्रील जीव गोस्वामी पाद ने गौड़ देश से आए श्रीनिवास, श्रीनरोत्तम और श्री दुःखी कृष्णदास को

प्रचार के उपयुक्त देख-कर, इन तीनों को यथाक्रम आचार्य, ठाकुर तथा श्यामानन्द आदि उपाधियाँ देकर स्वरचित व गोस्वामियों के ग्रन्थों के साथ श्रीकृष्ण नाम व श्रीकृष्णप्रेम प्राप्ति के उपाय के प्रचार के लिए गौड़ देश में भेजा था।

श्रीभक्ति रत्नाकर ग्रन्थ की पंचम तरंग में श्रीजीव गोस्वामी के प्रति श्रीरूप गोस्वामी की कृपा व शासन इस प्रकार वर्णित है --

गर्मियों का समय था, श्रीरूप गोस्वामी वृन्दावन में ही किसी एकान्त स्थान पर बैठकर ग्रन्थ लिख रहे थे । श्रीरूप गोस्वामी जी का शरीर पसीने से लथपथ देख श्रीजीव गोस्वामी उन्हें पंखे से हवा करने लगे। उसी समय श्रीवल्लभ भट्ट वहाँ पहुँच गए और कहने लगे --'मैं तुम्हारे भक्ति रसामृत ग्रन्थ के मंगलाचरण का संशोधन कर दूँगा।' -- ऐसा कह कर वे यमुना में स्नान करने चले गए। श्रीजीव गोस्वामी जी, वल्लभ भट्ट जी की इस प्रकार गर्व-पूर्ण बात सहन न कर सके और पानी लेने के बहाने आप भी यमुना के किनारे पहुँच गए, जहाँ वल्लभ भट्ट जी पहले ही उपस्थित थे। मौका देखकर श्रीजीव गोस्वामी जी ने श्रीवल्लभ भट्ट जी को पूछा कि आपने श्रीरूप गोस्वामी जी के लिखे ग्रन्थ भक्ति रसामृत के मंगलाचरण में गलती कहाँ देखी?
श्रीजीव गोस्वामी के पूछने पर श्रीवल्लभ ने उन्हें गलती बताई लेकिन श्रीजीव ने उनके मत का, उनकी युक्तियों का ज़ोरदार खण्डन किया और रूप गोस्वामी जी की लिखी बातों को ही भली-भान्ति स्थापित कर दिखाया। श्रीवल्लभ -- श्रीजीव गोस्वामी का अद्भुत पाण्डित्य देख कर आश्चर्यचकित रह गए एवं उन्होंने उत्सुकतावश सारी घटना श्रीरूप गोस्वामी प्रभु को सुनाई। घटना सुनकर श्रीरूप गोस्वामी जी ने श्रीजीव जी को स्नेह से डाँटते हुए कहा कि तुम शीघ्र ही पूर्व देश चले जाओ। जब तुम्हारा चंचल मन स्थिर हो जाए, तब वृन्दावन आना।

श्रीरूप गोस्वामी जी के निर्देशानुसार श्रीजीव गोस्वामी जी नन्द घाट पर
आकर अपने गुरुजी की कृपा प्राप्त करने के लिए कभी भूखे, कभी दिने में थोड़ा सा खाकर तीव्र भजन करते हुए रहने लगे। कुछ दिन में ही आपका शरीर अत्यन्त कमज़ोर हो गया। संयोगवश एक दिन श्रील सनातन गोस्वामी उसी राह से गुज़र रहे थे तो ब्रजवासियों ने उन्हें श्रीजीव गोस्वामी के सम्बन्ध में बताया एवं भेंट कराई। श्रीजीव की इस प्रकार अवस्था देख कर श्रीसनातन गोस्वामी जी की आँखों में वात्सल्य के आँसु भर आए और उन्होंने श्रीजीव को समझा-बुझाकर श्रीरूप गोस्वामी के चरणों में पहुँचा दिया। इस प्रकार श्रीजीव गोस्वामी जी ने श्रीरूप गोस्वामी जी का स्नेह और उनकी कृपा प्राप्त की।

श्रील जीव गोस्वामी जी भाद्र-शुक्ला द्वादशी तिथि को अवलम्बन करके आविर्भूत हुए थे तथा पौष मास की शुक्ला तृतीया तिथि को आपने तिरोधान लीला की।

श्रील जीव गोस्वामी जी की जय !!!!!

आपके तिरोभाव तिथि पूजा महा-महोत्सव की जय !!!!!!

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