श्रीचैतन्य महाप्रभु जी के कृष्ण-प्रेम प्रचार का अंकुर जिन भक्त से प्रारम्भ हुआ, उन भक्त का नाम है श्रील माधवेन्द्र पुरीपाद । श्री पुरीपाद हर समय भगवान के प्रेम में डूब कर श्रीकृष्ण की लीलाओं का रसास्वादन करते रहते थे अथवा तुलसी के 108 दानों वाली माला में हरे कृष्ण महामन्त्र का जाप करते हुए प्रतिदिन श्रीगोवर्धन की परिक्रमा किया करते थे। उनका वैराग्य इतना उच्च कोटी का था कि उन्होंने अपने रहने के लिए अच्छी झोंपड़ी भी नहीं बनाई। और न ही वे अपने खाने के लिए रसोई किया करते थे। ऐसा कहा जाता है कि वे सिर्फ़ गाय का दूध पीते थे वो भी कोई यदि स्वयं लाकर उन्हें दे तो, वे किसी से मांगते नहीं थे।
जिन गोविन्द की सेवा के लिए सैकड़ों-सैकड़ों लक्ष्मियाँ हमेशा तैयार रहती हैं, लीला में कभी-कभी उनको भी सेवकों का अभाव हो जाता है व ऐसा लगता है कि मानों उनकी सेवा में विघ्न हो रहा हो।
श्रीजगदीश पण्डित प्रभु की वंश-परम्परा में अधस्तनगण श्रीविश्वनाथ गोस्वामी, श्रीशम्भुनाथ मुखोपाध्याय और श्रीमृत्युन्जय मुखोपाध्याय महोदय आर्थिक अवस्था से उन्नत न थे। श्रीचैतन्य गौड़ीय मठ के संस्थापक श्रील भक्ति दयित माधव गोस्वामी महाराज विष्णुपाद जी अपने वैष्णव-प्रचार मण्डली के साथ जब चाकदह प्रचार में गए तो उनका प्रभावशाली प्रवचन, नगर संकीर्तन तथा विशाल भण्डारे के आयोजन को देखकर श्रील जगदीश पण्डित जी के
वंशज बड़े प्रभावित हुए। और उन्होंने बार-बार श्रील माधव गोस्वामी महाराज जी से अनुरोध किया कि वे श्रीजगन्नाथ जी की सेवा को अपने हाथों में लें । पहले-पहल तो श्रील माधव गोस्वामी महाराज जी ने कहा कि मैं आपकी सहायता करूँगा, आप सेवा चलाते रहें। परन्तु श्रीजगन्नाथ जी कुछ ऐसी दिव्य इच्छा कि वे लोग श्रीजगन्नाथ जी की सेवा-परिचर्या को ठीक से नहीं संभाल पाये। इसी कारण श्रीविग्रहों की नित्य-नैमित्तिक रूप से होने वाली सेवा-परिचालना व वार्षिक सेवानुष्ठान तथा जीर्ण होते मन्दिर का पुनः संस्कार न करवा पाने पर यशड़ा के पांचु ठाकुर महाशय और राणाघाट के श्रीसंतोष कुमार मल्लिक के बार - बार अनुरोध करने पर गत सन् 1962 में उनके द्वारा यशड़ा श्रीपाट की सेवा श्रीचैतन्य गौड़ीय मठ के प्रतिष्ठाता ॐ 108 श्री श्रीमद् भक्ति दयित माधव गोस्वामी महाराज विष्णुपाद जी के श्रीहस्तों में सम्पूर्ण रूप से समर्पण कर दी गयी।
श्रीचैतन्य गौड़ीय मठ के प्रतिष्ठाता अस्मदीय परमाराध्य श्रील भक्ति दयित माधव गोस्वामी महाराज जी ने यशड़ा श्रीपाट की सेवा प्राप्ति के बाद प्रथम वार्षिक महोत्सव के समय मैदान में बैठा कर हज़ारों-हज़ारों नर नारियों का महाप्रसाद के द्वारा जिस भाव से स्वागत किया था व उससे जिस आनन्द का आप्लावन हुआ, उसे स्मरण करके आज भी सब पुलकित हो उठते हैं।
पाठकों की जानकारी के लिए हम बताना चाहते हैं कि चाकदह में विराजमान ये श्रीजगन्नाथ जी, जगन्नाथ पुरी के प्रसिद्ध मन्दिर से यहाँ पर आये हैं।
एक दिन तो ऐसा हुआ की वे सारा दिन हरिनाम करते रहे, और कोई भी उनको दूध देने के लिए नहीं आया। श्रील माधवेन्द्र पुरीपाद जी ने तो इसकी परवाह नहीं की लेकिन, ऐसा कैसे हो सकता है कि भक्त भूखा रहे और भगवान कुछ न करें।
भक्त-वत्सल भगवान श्रीकृष्ण एक ग्वाले के वेष में श्रील माधवेन्द्र पुरीपाद ही के पास आये, और उन्होंने दूध का भरा लोटा श्रील माधवेन्द्र पुरीपाद जी को पकड़ाया और कहा की बाबा, ये दूध पी लो और मैं बाद में लोटा ले जाऊँगा। इतना ही नहीं भगवान श्रीकृष्ण गिरिधारी गोपाल विग्रह के रूप में उनके सामने विराजमान हो गए तथा उन्होंने श्रीलमाधवेन्द्र पुरीपाद जी को आदेश दिया कि मुझे बहुत भूख लगी है, मुझे भोजन कराओ। तथा मेरे शरीर में ठंडक के लिए मलयज चन्दन और कर्पूर का लेप लगाओ।
गोपाल जी ने जिस प्रकार से स्वयं अपनी सेवा श्रील माधवेन्द्र पुरीपाद जी को दी, उसी प्रकार नवद्वीप जिला के चाकदह (पश्चिम बंगाल) स्थान पर विराजमान भगवान जगन्नाथ जी ने स्वयं अपनी सेवा श्रीचैतन्य गौड़ीय मठ के संस्थापक श्रील भक्ति दयित माधव गोस्वामी महाराज 'विष्णुपाद' जी को प्रदान करी। ये वो ही पतितपावन श्रीजगन्नाथ जी हैं जो कि अपने भक्त श्रील जगदीश पण्डित जी प्रेम के वशीभूत होकर उनके कन्धों पर विराजमान होकर जगन्नाथ पुरी से नवद्वीप आये थे ।
भक्ति-प्रेमवश्य भक्त-वत्सल भगवान अपने भक्त की सेवा ग्रहण करने के लिए भला कौन से छल का अवलम्बन नहीं करते? भगवान एकान्त भाव से जिसे सेवा देना चाहते हैं, उसके लिए लीलामय श्रीहरि कितनी लीलाएँ प्रकट करते हैं, इसके बारे में क्या कह सकते हैं।
जिन गोविन्द की सेवा के लिए सैकड़ों-सैकड़ों लक्ष्मियाँ हमेशा तैयार रहती हैं, लीला में कभी-कभी उनको भी सेवकों का अभाव हो जाता है व ऐसा लगता है कि मानों उनकी सेवा में विघ्न हो रहा हो।
श्रीनित्यानन्द प्रभु के पार्षद, श्रील जगदीश पण्डित ठाकुर एवं उनकी भक्तिमती पत्नी दुःखिनी माता के स्वहस्त सेवित श्रीजगन्नाथ देव और श्री गौर गोपाल विग्रहों ने जैसे उनकी सेवा ग्रहण की, ठीक उसी प्रकार एक अपूर्व लीला-ढंग से उन्होंने भक्तराज त्रिदण्डि स्वामी श्रीश्रीमद् भक्ति दयित माधव गोस्वामी महाराज जी की सेवा भी अयाचित भाव से अंगीकार की।
श्रीजगदीश पण्डित प्रभु की वंश-परम्परा में अधस्तनगण श्रीविश्वनाथ गोस्वामी, श्रीशम्भुनाथ मुखोपाध्याय और श्रीमृत्युन्जय मुखोपाध्याय महोदय आर्थिक अवस्था से उन्नत न थे। श्रीचैतन्य गौड़ीय मठ के संस्थापक श्रील भक्ति दयित माधव गोस्वामी महाराज विष्णुपाद जी अपने वैष्णव-प्रचार मण्डली के साथ जब चाकदह प्रचार में गए तो उनका प्रभावशाली प्रवचन, नगर संकीर्तन तथा विशाल भण्डारे के आयोजन को देखकर श्रील जगदीश पण्डित जी के वंशज बड़े प्रभावित हुए। और उन्होंने बार-बार श्रील माधव गोस्वामी महाराज जी से अनुरोध किया कि वे श्रीजगन्नाथ जी की सेवा को अपने हाथों में लें । पहले-पहल तो श्रील माधव गोस्वामी महाराज जी ने कहा कि मैं आपकी सहायता करूँगा, आप सेवा चलाते रहें। परन्तु श्रीजगन्नाथ जी कुछ ऐसी दिव्य इच्छा कि वे लोग श्रीजगन्नाथ जी की सेवा-परिचर्या को ठीक से नहीं संभाल पाये। इसी कारण श्रीविग्रहों की नित्य-नैमित्तिक रूप से होने वाली सेवा-परिचालना व वार्षिक सेवानुष्ठान तथा जीर्ण होते मन्दिर का पुनः संस्कार न करवा पाने पर यशड़ा के पांचु ठाकुर महाशय और राणाघाट के श्रीसंतोष कुमार मल्लिक के बार - बार अनुरोध करने पर गत सन् 1962 में उनके द्वारा यशड़ा श्रीपाट की सेवा श्रीचैतन्य गौड़ीय मठ के प्रतिष्ठाता ॐ 108 श्री श्रीमद् भक्ति दयित माधव गोस्वामी महाराज विष्णुपाद जी के श्रीहस्तों में सम्पूर्ण रूप से समर्पण कर दी गयी।
श्रीचैतन्य गौड़ीय मठ के प्रतिष्ठाता ने सेवा ग्रहण करने के साथ-साथ श्रीमन्दिर के जीर्णोद्धार और नवीन गृह आदि निर्माण एवं लाइट इत्यादि की व्यवस्था के लिए बहुत रुपया खर्च किया।
श्रीचैतन्य गौड़ीय मठ के प्रतिष्ठाता अस्मदीय परमाराध्य श्रील भक्ति दयित माधव गोस्वामी महाराज जी ने यशड़ा श्रीपाट की सेवा प्राप्ति के बाद प्रथम वार्षिक महोत्सव के समय मैदान में बैठा कर हज़ारों-हज़ारों नर नारियों का महाप्रसाद के द्वारा जिस भाव से स्वागत किया था व उससे जिस आनन्द का आप्लावन हुआ, उसे स्मरण करके आज भी सब पुलकित हो उठते हैं।
आज भी भाग्यशाली जन श्रीजगन्नाथ जी के दर्शन करने उस मन्दिर में जाते हैं। आज कल वहाँ की सेवा, इत्यादि श्रीचैतन्य गौड़ीय मठ द्वारा संचालित है तथा मठ के भक्त आज भी श्रील भक्ति दयित माधव गोस्वामी महाराज जी द्वारा प्रदत्त विशाल खिचड़ी महोत्सव को स्मरण करके श्रील जगदीश पण्डित जी के तिरोभाव तिथि पर तथा श्रीजगन्नाथ जी की प्रकट् तिथि पर विशाल मैदान में वर्ष में दो बार खिचड़ी महोत्सव का आयोजन करते हैं ।
अखिल भारतीय श्रीचैतन्य गौड़ीय मठ के वर्तमान आचार्य श्रील भक्ति बल्लभ तीर्थ गोस्वामी महाराज जी का कहना है की जिस प्रकार श्रील माधवेन्द्र पुरीपाद जी के प्रेम के वशीभूत होकर गोपाल जी ने अपनी सेवा उन्हें प्रदान की थी, ठीक उसी प्रकार श्रीजगन्नाथ देव जी ने अपनी सेवा श्रील गुरुदेव ॐ विष्णुपाद 108 श्री श्रीमद् भक्ति दयित माधव गोस्वामी महाराज जी को प्रदान की।






कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें