गुरुवार, 2 जनवरी 2014

जब आपने अपनी पत्नी को घर ले कर आने से पहले 'माँ' कह दिया……

श्रील लोचन दास ठाकुर जी सन् 1527 में वर्द्धमान ज़िले के कटोचा महकुमा में गुस्करा रेलवे स्टेशन से पाँच कोस उत्तर की तरफ 'को' नामक गाँव में वैद्यवंश में आविर्भूत हुए थे। आप माता-पिता की एकमात्र सन्तान थे। उस समय की समाजिक प्रथा के अनुसार छोटी आयु में ही आपका विवाह हो गया था। 

गृहस्थ आश्रम में होने पर भी आप विषयों से विरक्त थे। हमेशा गौर-भक्तों के साथ कृष्ण-कथा कहने सुनने में ही समय बिताना आप अच्छा समझते थे। 

श्रीखण्ड के प्रसिद्ध गौर-पार्षद श्रील नरहरि सरकार ठाकुर जी ने श्रीलोचन दास जी के प्रति स्नेहाविष्ट होकर आपको दीक्षा प्रदान कर शिष्य के रूप में ग्रहण किया था। श्रील लोचन दास ठाकुर जी भी श्रीखण्ड में गुरुदेव जी के पादपद्मों में अवस्थान करते हुए परमोत्साह के साथ गुरुदेव जी की सेवा करने लगे।

बचपन में विवाह हो जाने के कारण श्रीलोचन दास जी की स्त्री अपने माता-पिता जी के पास रहती थी । कन्या बड़ी हो जाने के कारण एवं श्रील लोचन दास जी के वैराग्य की बात सुनकर कन्या के भविष्य के विषय के बारे में सोचकर कन्या के माता-पिता बेचैन हो उठे। कन्या के माता-पिता ने लोचनदास जी के गुरु जी के पास आकर सब निवेदन किया। 
श्रील नरहरि सरकार ठाकुर जी के आदेशानुसार, श्रील लोचन दास ससुराल
जाने को मजबूर हो गये। लम्बे समय से ससुराल न जाने के कारण तथा घर न पहचान पाने पर आपने गाँव की एक महिला को 'माँ' सम्बोधन कर घर के बारे में पूछा। बाद में ससुराल पहुँच कर मालूम हुआ कि जिसको आपने 'माँ' सम्बोधन किया था, वही आपकी स्त्री है। तभी से श्रील लोचन दास ठाकुर जी ने अपनी स्त्री को 'पत्नी' के रूप में न देखकर एक 'जननी' के रूप में स्वीकार किया और वैराग्य के साथ जीवन के अन्तिम दिनों तक श्री गुरु और गौरांग जी की सेवा में रहकर गुज़ारा।

आपके श्रील गुरुदेव जी ने आपको कीर्तन के विषय में शिक्षा दी और श्रीगौरांग महाप्रभु जी का पावन जीवन चरित्र लिखने का आदेश दिया।

अपने गुरुदेव श्रील नरहरि सरकार ठाकुर जी की आज्ञा को शिरोधार्य करके तथा उनके आशीर्वाद से आपने मात्र 14 वर्ष की अवस्था में ही 'श्रीचैतन्य मंगल' नामक ग्रन्थ लिख दिया था।

श्रीचैतन्य महाप्रभु जी के चरित्र को श्रवण करने से सर्वोत्तम मंगल की प्राप्ति होती है,  इसलिए ग्रन्थ का नामकरण हुआ 'श्रीचैतन्य मंगल'।

इस महान ग्रन्थ को लिखने के बाद आपके मन में एक बात आई कि मैंने श्रीचैतन्य महाप्रभु जी की महिमा को तो लिख दिया परन्तु श्रीमन् नित्यानन्द प्रभु की महिमा को नहीं लिख पाया। उसके बाद आपने श्रीमन् नित्यानन्द प्रभु की महिमा सूचक कुछ गीतियाँ लिखीं, जिनमें 'अक्रोध परमानन्द', 'निताइ गुणमणि आमार', इत्यादि प्रमुख हैं।

श्रील लोचन दास ठाकुर जी की जय !!!!!!

आपकी आविर्भाव तिथि की जय !!!!!!


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