बुधवार, 1 जनवरी 2014

आशीर्वचन

यदि कोई अपने आप से अर्थात आत्मानन्द से सुखी नहीं है, तो संसार के बाहरी विषय उसे ज़रा सा भी सुखी नहीं कर सकते। दूसरी ओर, जो अपने आप में तृप्त है, उसे संसार के बाहरी विषयों की आवश्यकता ही नहीं है। -- श्रील विश्वनाथ चक्रवर्ती ठाकुर ।    



हमारे शास्त्रों में कामना-वासना को ही हरिभजन करने वाले साधक का
परम शत्रु कहा गया है। यज्ञ कुण्ड में जैसे घी डालते रहने से कुण्ड की अग्नि कभी भी शान्त नहीं होती, उसी प्रकार सांसारिक भोगों को भोगते रहने से जीव के अन्दर भोगों की इच्छा भी शान्त नहीं होती, बल्कि बढ़ती रहती है । -- श्रील विश्वनाथ चक्रवर्ती ठाकुर ।

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