यदि कोई अपने आप से अर्थात आत्मानन्द से सुखी नहीं है, तो संसार के बाहरी विषय उसे ज़रा सा भी सुखी नहीं कर सकते। दूसरी ओर, जो अपने आप में तृप्त है, उसे संसार के बाहरी विषयों की आवश्यकता ही नहीं है। -- श्रील विश्वनाथ चक्रवर्ती ठाकुर ।
हमारे शास्त्रों में कामना-वासना को ही हरिभजन करने वाले साधक का


कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें