शुक्रवार, 6 दिसंबर 2013

मन और आत्मा में क्या अन्तर है?

हमारे दो शरीर होते हैं, एक स्थूल शरीर और एक सूक्षम शरीर। यह जो दो हाथ, दो पैर, दो कान, इत्यादि का शरीर दिखाई दे रहा है, इसको शास्त्रीय भाषा में स्थूल शरीर कहते हैं । इसके अन्दर एक और शरीर है, -- मृत्यु होने के बाद यमदूत जिसको लेकर जाते हैं। शास्त्रीय भाषा में उसको सूक्षम शरीर कहते हैं। स्थूल शरीर में मुख्य रूप से दस इन्द्रियाँ होती हैं । इसी प्रकार सूक्षम शरीर में मन, बुद्धि और अहंकार होता है।                                                                                                                                
 श्रीमद् भगवद् गीता के अनुसार यह स्थूल शरीर और सूक्षम शरीर भगवान कि अपरा प्रकृति के अंश हैं जो कि अ-चेतन होते हैं। दूसरी ओर आत्मा भगवान की परा प्रकृति का अंश होती है और साथ में चेतन होती है। चेतन का अर्थ होता है कि जिसमें इच्छा, क्रिया और अनुभूति होती है।                                                                                    
  जब किसी व्यक्ति की मृत्यु होती है तो उसका स्थूल शरीर नष्ट हो जाता है। जिसे समाज में जला दिया जाता है य दफना दिया जाता है। और जब किसी व्यक्ति का मोक्ष हो जाता है तो उसका सूक्षम शरीर भी खत्म हो जाता है।                                                                         जबकि आत्मा कभी भी नष्ट नहीं होती।                                                                                                    
  श्रीमद् भगवद् गीता के दूसरे अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि आत्मा को ना तो तलवार इत्यादि से काटा जा सकता है , ना इसे आग जला सकती है, और ना ही इसे पानी गीला कर सकता है, ना ही हवा सुखा सकती है। शरीर में आत्मा रहने से सूक्षम शरीर और स्थूल शरीर दोनों ही कार्य करते हैं ।                                                                                            
  शरीर व शरीर की इन्द्रियाँ कार्य करती हैं !  मन यह करना अथवा नहीं करना, इस संकल्प / विकल्प को करता है। जबकि बुद्धि निर्णय लेती है कि यह करना है अथवा नहीं करना है।                                                                           आत्मा सूक्षम शरीर व स्थूल शरीर से कार्य करवाती है और उसके कारण सुख व दुख का अनुभव करती है। आत्मा के बिना स्थूल शरीर व सूक्षम शरीर कोई भी कार्य नहीं कर सकता।

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