(यह लेख भारत के प्रसिद्ध हिन्दी दैनिक समाचार पत्र - नवभारत टाइम्स - में 6/11/2013 में छपा था)
एक वृद्ध माता सड़क के किनारे कुछ ढूंढ रही थी। रात का समय था। कुछ देर में एक युवक वहाँ से गुज़रा तो उसने माता को पूछा, 'माता जी! आप क्या ढूँढ रही हैं ?' बूढ़ी माता ने उत्तर दिया, 'बेटा ! मेरा एक पाँच सौ का नोट गिर गया है, मैं उसी को ढूँढ रही हूँ ।' लड़के ने कहा, 'माता जी ! आप यहीं रहें, मैं ढूंढ देता हूँ ।' ऐसा कह कर वह लड़का नोट ढूँढने लगा। कुछ समय में एक अन्य राहगीर आ गया । उसने भी जब सारी बात सुनी तो वह भी बूढ़ी माता की सहायता के लिये 500 का नोट ढूँढने लगा। कुछ ही समय में पाँच - सात लोग उस नोट को ढूँढने लगे।
जब काफी समय ढूँढने पर भी कुछ नहीं मिला तो एक नवयुवक ने बूढ़ी माता को पूछा, 'माँ, वह नोट कहाँ गिरा था?' वृद्धा ने उत्तर दिया, 'बेटा ! जब मैं आज शाम को वो सामने से जा रही थी, तभी वह नोट गिरा था।' सभी ने उस दिशा में देखा जिधर वृद्धा इशारा कर रही थी। कुछ दूरी पर बगीचा था व अंधेरा भी था। नवयुवक ने वृद्धा को पूछा, 'माँ ! जब नोट वहाँ गिरा था, तो तुम यहाँ क्यों ढूँढ रही हो?' वृद्धा ने कहा, 'बेटा! उधर बहुत अंधेरा था, और यहाँ रौशनी है, अतः मैं यहाँ पर ढूँढ रही हूँ ।'
हम लोगों कि स्थिति भी कुछ ऐसी ही है। हमारी भागमभाग की ज़िंदगी से भी सुख-चैन जैसे खो सा गया है। जितने भी जीव हैं , वे सभी सुख चाहते हैं । सभी ज्ञानवान कहलाना चाहते हैं। तथा सभी जीना चाहते हैं। अब सुख के लिये हम क्या कुछ नहीं करते?
बचपन में हम विद्या अध्ययन करते हैं ताकि हम बड़े होकर अच्छे पद पर आसीन हों व धन कमायें। धन से सुखी जीवन व्यतीत कर सकें। हमारे माता-पिता कितनी मेहनत करते हैं कि हम विद्वान बन सकें। फिर सुख कि तलाश में हम विवाह रचाते हैं। बच्चे भी करते हैं। घर भी बनाते हैं। देश-विदेश भ्रमण करते हैं। विभिन्न व्यवसाय अथवा उच्च नौकरी करते हैं। कई तरीकों से धन संजोते हैं। फिर भी हम स्थाई सुख को प्राप्त नहीं कर पाते। कारण क्या है? जिससे भी बात करो, वो किसी ना किसी कारण से दुःखी है। धनी भी, गरीब भी। पढ़ा-लिखा भी, अनपढ़ भी, आदमी भी, औरत भी, गाँव में रहने वाला भी, और शहर में रहने वाला भी, इत्यादि। कुछ तो है जिससे हम स्थाई सुख से दूर हैं। अगर कुछ सुख मिलता भी है, तो वो भी क्षणिक है, स्थाई नहीं। तो क्या हम यह समझें कि हम में और उस बूढ़ी माँ में कोई अन्तर नहीं है?
जैसे हमें सोना चाहिए तो क्या हमें वह लोहार के पास जाने से मिलेगा? सोना लेने के लिये सुनार के पास जाना होगा। अगर मैं दांत के दर्द से परेशान हूँ तो मुझे उस चिकित्सक के पास जाना होगा तो दांत का इलाज करता है। किसी अन्य रोग के चिकित्सक के पास जाने से मेरे रोग का निदान नहीं होगा।
इसी प्रकार सुख की खोज में हमें उस के पास जाना होगा, जिसके पास स्थाई सुख होगा। हमारा खोआ हुआ सुख-चैन पाने के लिये हमें वहाँ जाना होगा जहाँ यह खोआ है। हम तो सुख के लिये उनके पास जा रहे हैं जिनका हमारी तरह ही सुख-चैन खोआ हुआ है और जो स्वयं ही स्थाई सुख खोज रहे हैं। चाहे वह हमारा जीवन साथी है, चाहे बच्चे, चाहे हमारा बास, इत्यादि। जिनके पास जो वस्तु है ही नहीं, वो वह वस्तु आपको देंगे कैसे?
अब प्रश्न यह है कि स्थाई सुख है किसके पास? स्थाई रूप से सुखी तो एकमात्र भगवान ही हैं। अगर हम अपनी खोज की दिशा सही कर दें और भगवान की ओर देखें तो वस्तुतः हमें स्थाई सुख का मार्ग मिल जायेगा। वैसे भी हमारा ये दुःख का चक्कर तब से शुरु हुआ है जब से हमने सुख-स्वरूप भगवान को भुलाया है। अत: सही स्थान पर वास्तविक धन को खोजें। ---- द्वारा: श्रील भक्ति विचार विष्णु महाराज जी (श्री चैतन्य गौड़ीय मठ)
एक वृद्ध माता सड़क के किनारे कुछ ढूंढ रही थी। रात का समय था। कुछ देर में एक युवक वहाँ से गुज़रा तो उसने माता को पूछा, 'माता जी! आप क्या ढूँढ रही हैं ?' बूढ़ी माता ने उत्तर दिया, 'बेटा ! मेरा एक पाँच सौ का नोट गिर गया है, मैं उसी को ढूँढ रही हूँ ।' लड़के ने कहा, 'माता जी ! आप यहीं रहें, मैं ढूंढ देता हूँ ।' ऐसा कह कर वह लड़का नोट ढूँढने लगा। कुछ समय में एक अन्य राहगीर आ गया । उसने भी जब सारी बात सुनी तो वह भी बूढ़ी माता की सहायता के लिये 500 का नोट ढूँढने लगा। कुछ ही समय में पाँच - सात लोग उस नोट को ढूँढने लगे।
जब काफी समय ढूँढने पर भी कुछ नहीं मिला तो एक नवयुवक ने बूढ़ी माता को पूछा, 'माँ, वह नोट कहाँ गिरा था?' वृद्धा ने उत्तर दिया, 'बेटा ! जब मैं आज शाम को वो सामने से जा रही थी, तभी वह नोट गिरा था।' सभी ने उस दिशा में देखा जिधर वृद्धा इशारा कर रही थी। कुछ दूरी पर बगीचा था व अंधेरा भी था। नवयुवक ने वृद्धा को पूछा, 'माँ ! जब नोट वहाँ गिरा था, तो तुम यहाँ क्यों ढूँढ रही हो?' वृद्धा ने कहा, 'बेटा! उधर बहुत अंधेरा था, और यहाँ रौशनी है, अतः मैं यहाँ पर ढूँढ रही हूँ ।'
हम लोगों कि स्थिति भी कुछ ऐसी ही है। हमारी भागमभाग की ज़िंदगी से भी सुख-चैन जैसे खो सा गया है। जितने भी जीव हैं , वे सभी सुख चाहते हैं । सभी ज्ञानवान कहलाना चाहते हैं। तथा सभी जीना चाहते हैं। अब सुख के लिये हम क्या कुछ नहीं करते?






कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें