अनेक युग पूर्व भगवान श्रीकृष्ण ने भगवद्गीता का दिव्य ज्ञान सूर्यदेव विवस्वान को दिया। जहाँ तक हमें पता है सूर्य अत्यन्त तप्त स्थान है और वहाँ पर किसी का रह पाना असम्भव है। हम इस शरीर से सूर्य के बहुत निकट तक पहुँच भी नहीं सकते हैं। वैदिक साहित्य से हम यह जान सकते हैं कि सूर्यलोक, हमारे इसी लोक की तरह है, किन्तु उसकी प्रत्येक वस्तु अग्नि से बनी है। जिस प्रकार हमारा लोक (पृथ्वी) मिट्टी से बना है, उसी प्रकार सूर्यलोक अग्नि से बना है।
ऐसे अनेक लोक (ग्रह) हैं जो प्रधानत: अग्नि, जल तथा वायु से बने हैं । इन विविध लोकों के जीव (प्राणी) अपने अपने लोक के प्रधान तत्त्व (अग्नि, जल, वायु, मिट्टी, आदि) के अनुसार शरीर धारण करते हैं ; अत: सूर्यलोक के वासियों के शरीर अग्नि से निर्मित हैं। - श्रील ए सी भक्तिवेदान्त स्वामी महाराज जी ।





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