गुरुवार, 7 नवंबर 2013

और वृक्ष गुरु हो गया?

वृक्ष की शाखा तोड़ने पर, फल तोड़ने पर, काट देने पर, खाल उतार देने पर अथवा जला देने पर भी वह ऐसा करने वाले के प्रति रोष प्रकट नहीं करता, सब कुछ सहन कर लेता है अपितु ऐसा करने पर भी अर्थात् उसके फलों व पत्तों को तोड़ने वाला अथवा उसे काटने वाला व्यक्ति भी यदि धूप अथवा वर्षा के समय आश्रय लेने के लिये उसी वृक्ष के नीचे आता है तो वह वृक्ष स्वयं धूप एवं वर्षा को सहन कर, अपने को काटने वाले अथवा तंग़ करने वाले को छाया, विश्राम एवं आश्रय देकर धूप और वर्षा से उसकी रक्षा करता है । वृक्ष यह कभी नहीं कहता कि तुमने मुझे काटा है या दु:ख दिया है इसलिये मैं तुम्हें आश्रय नहीं दूँगा।                                                                                                            वृक्ष के समान सहनशील होकर हरिकीर्तन करने से ही अति शीघ्र भगवत्-प्रेम की प्राप्ति हो सकती है।

                                                                                                            तात्पर्य यह है कि यदि कोई व्यक्ति तुम्हें कष्ट दे तो उससे लड़ाई मत करो, उससे बदला लेने की भावना मत रखो, क्योंकि ऐसा करने से भजन नष्ट हो जाएगा, ध्यान दूसरी तरफ चला जायेगा अर्थात् तुम्हारा ध्यान भगवान की ओर से हट कर दुनियां में चला जाएगा। इसलिये दुनियांदारी के सम्मान-तिरस्कार अथवा निन्दा-स्तुति की ओर ध्यान नहीं देना चाहिये। सम्मान को चाहने और निन्दा को न चाहने से अर्थात् स्तुति से प्रसन्न होने से दिल उसी में मत्त हो जाएगा, उसी में उसका आपका आवेश हो जायेगा और इससे भगवान को आप भूल जायेंगे। - श्रील भक्ति दयित माधव गोस्वामी महाराज जी।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें