भगवान के एक महान भक्त, श्रील विश्वनाथ चक्रवर्ती ठाकुर जी कहते हैं कि -- ----- जिन्होंने अपने मन को अपने वश में कर लिया है, उनका मन तो उनका दोस्त है, परन्तु जिन्होंने अपने मन को वश में नहीं किया, उनका मन ही उनका शत्रु है अर्थात् उनका मन उनके साथ शत्रुओं जैसा व्यवहार करता है।
----- श्रीमद्भावत महापुराण के अनुसार जिस प्रकार वृक्ष की जड़ को जल द्वारा सींचने पर वृक्ष का तना, शाखाएँ व यहाँ तक कि छोटी - छोटी टहनियाँ, फूल, फल व पत्ते इत्यादि तृप्त हो जाते हैं, उसी प्रकार तमाम कारणों के कारण एक मात्र भगवान श्रीकृष्ण की आराधना करने से सभी की उपासना हो जाती है।
---- भगवान के भक्त जिस तरह से भगवान में आसक्त रहते हैं, ठीक उसी प्रकार भगवान भी अपने भक्तों में आसक्त रहते हैं। संसार में भी देखा जाता है कि व्यक्ति की अपने अनुकूल सेवक के प्रति एक अलग प्रकार की वात्सल्य भावना रहती है, ठीक उसी प्रकार भगवान भी अपने अनन्य भक्तों के प्रति एक विशेष वात्सल्य भाव से जुड़े रहते हैं।
----- श्रीमद्भावत महापुराण के अनुसार जिस प्रकार वृक्ष की जड़ को जल द्वारा सींचने पर वृक्ष का तना, शाखाएँ व यहाँ तक कि छोटी - छोटी टहनियाँ, फूल, फल व पत्ते इत्यादि तृप्त हो जाते हैं, उसी प्रकार तमाम कारणों के कारण एक मात्र भगवान श्रीकृष्ण की आराधना करने से सभी की उपासना हो जाती है।
---- भगवान के भक्त जिस तरह से भगवान में आसक्त रहते हैं, ठीक उसी प्रकार भगवान भी अपने भक्तों में आसक्त रहते हैं। संसार में भी देखा जाता है कि व्यक्ति की अपने अनुकूल सेवक के प्रति एक अलग प्रकार की वात्सल्य भावना रहती है, ठीक उसी प्रकार भगवान भी अपने अनन्य भक्तों के प्रति एक विशेष वात्सल्य भाव से जुड़े रहते हैं।
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