एक गृहस्थी के लिए आसपास के वातावरण एवं क्षणिक अनित्य शारीरिक सम्बन्धों के प्रभाव से अपने-आप को पूर्णतः मुक्त रखना बहुत मुश्किल है। अतः किसी भी गृहस्थ-भक्त को भक्ति - विरुद्ध कर्मों एवं आदतों का त्याग करने की चेष्टा करते हुए श्रीकृष्ण व उनके भक्तों की सेवा के लिए गृहस्थ-जीवन यापन करना चाहिए। उसे ये मानना चाहिए कि श्रीकृष्ण ही घर के स्वामी हैं और घर में रहने वाले सभी श्रीकृष्ण के सेवक हैं।
श्रीचैतन्य महाप्रभु जी की गृहस्थ-भक्तों को सलाह है कि वे श्रीविग्रह की अर्चना, वैष्णवों की सेवा एवं हरिनाम संकीर्तन करें। यदि श्रीविग्रह की अर्चना में कठिनाई हो तो उन्हें वैष्णव-सेवा व नाम-संकीर्तन तो अवश्य ही करना चाहिए। शुद्ध-भक्तों के संग से वे प्रेरणा प्राप्त करेंगे तथा उन्हें यह याद रहेगा कि उनका जीवन श्रीकृष्ण की सेवा के लिए है, अन्य किसी के लिए नहीं। -- श्रील भक्ति बल्लभ तीर्थ गोस्वामी महाराज जी ।
Hare Krishna.
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