सोमवार, 9 सितंबर 2013

अपने कष्टों के लिए किसी और को दोष मत दो

तुम क्या कर रहे हो ? अपनी पलकों को मत झुकाओ बल्कि वैष्णवों के शब्दों को अपने कानों तथा आखों से सदा ग्रहण करो । इस प्रक्रिया से तुम्हें दिव्य ज्ञान और भक्ति के अवतार श्री शुकदेव गोस्वामी जैसे भक्तों की कृपा प्राप्त होगी ।
अगर तुम भजन करना चाहते हो तो श्रीमद्  भागवतम् के इस श्लोक को हमेशा याद रखो । मैं तो कहूँगा कि इस श्लोक को मात्र याद ही नहीं अपितु इसके अर्थ तथा इसके भाव को भी हमेशा स्मरण रखो । इसके स्मरण के बिना तुम हमेशा अस्थिर रहोगे और भजन करने में सक्षम नहीं हो पाओगे ।

तत्तेनुकम्पां सुसमीक्ष्यमाणो भुञ्जान एवात्मकृतं विपाकम् |
हृद्वाग्वपुर्भिर्विदधन्नमस्ते जीवेत यो मुक्तिपदे स दायभाक् ॥ (श्रीमद्भागवतम् - 10/14/8)


इसका अर्थ है सावधानी से विचार करना कि क्या अच्छा है और क्या बुरा है । अर्थात हम यह विचार करें कि श्री कृष्ण जो भी अच्छा या बुरा कर रहे हैं उसमें मेरा मंगल है । हमेशा उनकी कृपा का अनुभव करें । जब मुसलमान बाज़ारों में श्रील हरिदास ठाकुर जी को मार रहे थे तो वे मन  ही मन सोच रहे थे कि काजी की सभा में मैंने श्री कृष्ण के लिए जो निन्दात्मक शब्द सुने, यह उसी के फलस्वरूप है । श्रीकृष्ण की निंदा  सुनने का बड़ा भयंकर फल होता है, ये तो उनकी कृपा है कि मुझे थोड़ा सा ही दंड मिल रहा है ।

जब भी हमारे ऊपर कोई समस्या आए तो हमें यह सोचना चाहिए कि यह सब श्रीकृष्ण की इच्छा से हो रहा है, इसमे निश्चित ही मेरा मंगल है ।
 
भुञ्जान एवात्म कृतं विपाकम् ।

इस श्लोक के इस वाक्यांश का अर्थ है कि जो भी परेशानी, दुःख या पीड़ा मुझे मिल रही है श्रीकृष्ण उसका कारण नहीं हैं, यह तो मेरे ही पूर्व कर्मो का फल है ।

लेखक - श्रील बी वी सज्जन महाराज ।


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