गुरुवार, 5 सितंबर 2013

काम और प्रेम में अन्तर

द्वारा - श्रील भक्ति दयित माधव गोस्वामी महाराज ।

कहते हैं कि जगत में पति-पत्नि का पारस्परिक गाढ़ प्रेम होता है । किन्तु क्या पति-पत्नि का प्रेम वास्तविक प्रेम है?

प्रेम किसको कहते हैं?

प्रिय व्यक्ति के सुख में ही अपना सुख मानना - इसको प्रेम कहते हैं। किन्तु संसार में देखा जाता है कि थोड़ी सी प्रतिकूलता, थोड़ा सा इधर से उधर हो जाने से ही पति-पत्नि एक दूसरे को तलाक दे देते हैं।  क्या यह प्रेम है?

नहीं, यह तो काम - वासना है। पत्नि, पति की बहुत सेवा करती है, पति
आफिस से आते हैं तो वह खाना तैयार करके रखती है, घर के समान की सम्भाल रखती है, पति के लिये बहुत काम करती है -- क्या यह सब कुछ
इसलिये करती है कि उसे पति से प्रेम है? परन्तु यदि उसे पति से सच्चा प्रेम होता तो अपने पति के बूढ़े माता-पिता की उपेक्षा कैसे करती ? आजकल स्त्रियाँ प्रायः अपने बूढ़े सास-ससुर के प्रति कहती हैं -- यह बूढ़े मरते भी नहीं हैं; यह बूढ़े मर जायें तो अच्छा है, व्यर्थ ही घर में जगह घेरे हुये हैं। क्या यह प्रेम है?
क्या यह पति प्रेम के लक्षण हैं? यदि पति से सच्ची प्रीति होती तो पति की प्रिय वस्तु में भी अवश्य प्रीति होनी चाहिए थी। ऐसा ही यह विचार है। If you love me, love my dog also,  अगर तुम्हारी मेरे प्रति प्रीति है तो मेरे कुत्ते से भी प्यार करो। प्रेमी का ऐसा ही भाव होना चाहिए।    
                                              
ऐसा ही विचार परमार्थ राज्य में भी है ।




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