यदि कोई मन में यह विचार लाये कि श्रीमद्भगवद गीता
तथा हरे कृष्ण महामन्त्र तो हिन्दु-पद्धति के अंग हैं, और उसे ये स्वीकार्य नहीं
हों, तो वह गिरजाघर, अन्य स्थानों में जाता रह कर भी इसका गायन कर सकता है। इस विधि
तथा उस विधि में कोई भेद नहीं है; असलियत तो यह है कि चाहे जिस विधि को अपनाया
जाये, उसे ईश्वर-भावना-भावित होना चाहिये। ईश्वर ना तो मुस्लिम है, न तो हिन्दु और
न क्रिस्तानी -- वह ईश्वर है। - श्रील भक्तिवेदान्त स्वामी महाराज
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