हरे कृष्ण महामन्त्र के प्रभाव से वृक्ष भी
सिद्धावस्था को प्राप्त हो गया
द्वारा - श्रील भक्ति मयुख भिक्षु महाराज
आज से लगभग 500 वर्ष पहले की बात है। संन्यास लेने के
बाद भगवान श्रीचैतन्य महाप्रभु जी अपने भक्तों के साथ श्रीधाम पुरी में रह रहे थे।
एक दिन आप भगवान जगन्नाथ जी की मंगल आरती दर्शन करके वापस आ रहे थे कि मन्दिर के
पुजारी ने जगन्नाथ जी की प्रसाद दातुन आप को दी। आप उस दातुन को लेकर सीधा श्रील
हरिदास ठाकुर को मिलने चले गये। बातों ही बातों में आपने वह दातुन श्रील हरिदास
ठाकुर जी कि कुटिया के सामने जमीन में गाड़ दी, धीरे-धीरे वे दातुन अंकुरित हुई और
समय आने पर उसने एक विशाल बकुल वृक्ष का रूप धारण कर लिया। श्रील हरिदास ठाकुर जी
दिन-रात इसी वृक्ष के नीचे बैठकर तुलसी के दानों वाली माला पर नित्यप्रति, 'हरे
कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे, हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे'……इस
महामन्त्र की 192 माला अर्थात 3 लाख हरिनाम जाप किया करते थे।
हमारे शास्त्र तो हमेशा से ही कहते हैं कि घास, पेड़,
पौधे-लतायें, इन सबमें भी आत्मा बसती है। जैसे किसी जीवात्मा को कर्मानुसार पुरूष
का, किसी को स्त्री का शरीर मिला, व कर्मानुसार किसी को पक्षी, पशु अथवा कीट-पतंग
का शरीर मिला है उसी प्रकार जीवात्मा को घास, पेड़, पौधे व लताओं को शरीर मिलता है।
अब तो हमारे देश के श्रीजगदीश चन्द्र बोस जैसे वैज्ञानिकों ने भी सिद्ध कर दिया है
कि वृक्षों में भी प्राण होते हैं।
प्रतिदिन श्रील हरिदास ठाकुर जी से 'हरे कृष्ण'
महामन्त्र का जाप सुनते सुनते बकुल का वह वृक्ष जिसके नीचे बैठकर श्रील हरिदास
ठाकुर जी हरिनाम करते थे - सिद्ध - अवस्था को प्राप्त हो गया।
ऐसा कहा जाता है कि एक बार जगन्नाथ जी के रथ के पहिये
बनाने के लिये राज कर्मचारियों द्वारा इस वृक्ष का चयन किया गया । परन्तु जब वे
वृक्ष काटने आये तो उन्होंने देखा कि वृक्ष तो अभी भी हरा-भरा व विशाल है किन्तु
उसका तना खोखला है। खोखली लकड़ी से भला पहिया कैसे बनेगा, ये सोच राज-कर्मचारी इस
वृक्ष को छोड़कर चले गये। आज लगभग 500 वर्ष बीतने के बाद भी ये वृक्ष उसी प्रकार
खोखले तने वाला हरा-भरा विशाल सिद्ध वृक्ष है।
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