
सिर पर एक सरसों के दाने के समान विराजमान है। श्रीशेष के अनेकों सिर हैं जो उज्जवल रत्नों से दैदीप्यमान हैं। श्रीशेष भगवान के गुणगान में रत रहते हैं। वे हजारों मुखों से भगवान के गुणगान में व्यस्त हैं, परन्तु भगवान के गुणों की सीमा ही पता नहीं चलती। चतुःसन उन्हीं से श्रीमद्भागवतम् का श्रवण करते हैं।
श्रीशेष ही विभिन्न रूपों (छत्र, पादुका, शय्या,
वस्त्र, कुर्सी, भवन, जनेऊ, सिंहासन, आदि) से भगवान की सेवा करते हैं।
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